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शर्मसार होते-होते बची मानवता, चार युवकों ने दिया विक्रांत की अर्थी को कंधा

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Feb 27, 2020

भूपेन्द्र सिंह - पूरा मामला इस प्रकार बताया जाता है कि गत मंगलवार को विक्रांत की तबियत बिगड़ने के कारण उसका इलाज उसके माँ करा रही थी। विक्रांत को पीलिया की बीमारी थी। मंगलवार को इलाज के लिए रायगढ़ ले गए थे, लेकिन वह नहीं बच सका। शाम को शव महापल्ली घर ले आये। चूंकि विक्रांत की माँ-बाप ने अंतरजातीय विवाह किया था और विक्रांत के जन्म के बाद उसके बाप ने मां-बेटे को छोड़ दिया और दूसरी शादी कर ली थी। ऐसे में विक्रांत की माँ ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया।

विक्रांत की अर्थी को कंधा देने के लिए कोई तैयार नहीं था

इधर समाज ने मां-बेटे को नहीं अपनाया। बाप ने भी बेटे विक्रांत को स्वीकार नहीं किया। ऐसे में सामाजिक पेचीदगी में उलझा, विक्रांत की अर्थी को कंधा देने के लिए कोई तैयार नहीं था। बुधवार की सुबह 10 बजे तक अर्थी नहीं उठ पाई थी। ग्राम पंचायत महापल्ली के सरपंच अनंतराम चौहान के लिए भी यह मुसीबत बन गई थी। जातपात के आगे मानवता कराह उठी थी। ऐसे में चार युवकों ने देवदूत बनकर विक्रांत की अर्थी को कंधा देकर श्मसान घाट पहुंचाया। जहां विक्रांत के मामा बलराम ने मुखाग्नि दी। ग्राम पंचायत की पहल पर अर्थी भी सजा दी गई। पूर्व जनपद पंचायत सदस्य टीकाराम प्रधान, ग्राम पंचायत महापल्ली के उपसरपंच पति शैलेष साहू, बसंत प्रधान, सामाजिक कार्यकर्ता व नवनिर्वाचित पंच ब्रजेश गुप्ता, जनपद सदस्य अशोक निषाद ने दाह संस्कार में महती भूमिका निभाई। इनके इस मानवीय कृत्य की सभी ने प्रशंसा की है।