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रायगढ़ः कलयुगी गुरू, जिनका शिक्षा से नहीं, पैसों से होता है सरोकार

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Jul 4, 2019

भूपेन्द्र सिह- भारत कभी गुरुओं की धरती रही, जहां महर्षि वेदव्यास, महर्षि बाल्मीकि, विश्वमित्र, चाणक्य, धन्वन्तरि, द्रोण आदि ने विश्व को अनेकों प्रतिभाशाली छात्रों को शिक्षा देकर मिशाल प्रस्तुत किया है। अब इसी धरती पर आज के गुरु ज्ञान बांटने के लिये नहीं, बल्कि पैसों के लिए नौकरी करते हैं। उन्हें न तो शिक्षा से मतलब है, न ही संविधान की चिंता। एक तरफ सरकार अनेकों योजनाओं के माध्यम से बच्चों को साक्षर बनाने प्रयास कर रही है, दूसरी तरफ यहां के शिक्षक उन योजनाओं को जमीन पर उतरने नहीं दे रहे हैं।

दो बच्चियों को पढ़ाने को लेकर महिला हो रही परेशान

रायगढ़ जिले के खरसिया क्षेत्र की रहने वाली महिला अपने शराबी पति से परेशान होकर रायगढ़ में मोची का काम कर, अपनी तीन बच्चियों में से 2 बच्चियों के प्रवेश के लिए स्टेशन चौक के पास स्थित कन्या शाला स्कूल में गयी। वहां के प्रभारी द्वारा कहा जा रहा है कि तुम खरसिया की रहने वाली हो, तो खरसिया में ही पढाओ। जब महिला द्वारा आपबीती बताकर प्रवेश देने की बात की गई, तो बार-बार कुछ पेपरों की कमी बताकर घुमाया जा रहा है। महिला की माने तो वह परेशान हो चुकी है। अब लगता है उसकी बच्ची अनपढ़ ही रह जाएंगी।

परिजन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन सरकारी व्यवस्था के कारण हो रहे असहाय

रायगढ़ से लगे शासकीय प्राथमिक विद्यालय उरांवपारा पंडरीपानी पूर्व के शिक्षकों का भी हाल कुछ ऐसा ही है। यहां के टीचर दो मासूम को इसलिए स्कूल से बाहर कर दिए कि वे बदमाशी करते हैं। स्कूल के रवैया से परेशान परिजन बच्चों के प्रवेश के लिए कलेक्टर से गुहार लगा रहे हैं। परिजन का कहना है कि वे अपने बच्चों को समझाकर स्कूल तक पहुंचायेंगे और वे अब बदमाशी भी नहीं करेंगे। दोनों घटनाओं को देखें तो परिजन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन सरकारी व्यवस्था के कारण उनका प्रवेश नहीं हो पा रहा है। पहले गुरु अपने विद्यार्थियों के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते थे, अब इनको अपने वेतन से मतलब है। कोई पढ़े या नहीं इनका क्या।