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बिलासपुरः महाराज अग्रसेन का जयंती समारोह, कार्य़क्रम में राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल रहे मुख्य अतिथि

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Sep 30, 2019

अग्रवाल सभा बिलासपुर के द्वारा अग्रसेन महाराज का जयंती समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम मुख्य अतिथि राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल की उपस्थिति में संपन्न हुआ। मंत्री अग्रवाल ने कहा कि अग्रवाल समाज सदैव ही सामाजिक एवं लोक हित के कार्यों के लिये अग्रणी रहा है। मुझे गर्व है कि मैं अग्र समाज का हिस्सा हूँ। उन्होंने अग्रवाल सभा बिलासपुर के इस भव्य आयोजन एवं स्नेह के लिये धन्यवाद कहा और महाराजा अग्रसेन जयंती की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं दी।

अग्रसेन एक महान भारतीय राजा (महाराजा) थे। जिन्होंने अग्रवाल और आगराहारी समुदायों ने उसके वंश का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें उत्तर भारत में व्यापारियों के नाम पर अग्रोहा का श्रेय दिया जाता है, और यज्ञों में जानवरों को मारने से इनकार करते हुए उनकी करुणा के लिए जाने जाते है। वे ऐसे कर्मयोगी लोकनायक हैं जिन्होंने बाल्यकाल से ही, संघर्षों से जूझते हुए अपने आदर्श जीवन कर्म से, सकल मानव समाज को महानता का जीवन-पथ दर्शाया। अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत कर, विश्व उपदेष्टा का महत कार्य किया।

महाराजा अग्रसेन ने लोक कल्याणार्थ किए गए यज्ञ में पशु बलि देने से किया था इंकार

चैतन्य आनंद की अगणित विशेषताओं से संपन्न, परम पवित्र, परिपूर्ण, परिशुद्ध, मानव की लोक कल्याणकारी आभा से युक्त महामानव अग्रसेन की महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण उन्हें एक समाज विशेष का कुलपुरुष घोषित कर इतिहास ने हाशिए पर डाल दिया। अग्रसेनजी सूर्यवंश में जन्मे। महाभारत के युद्ध के समय वे पन्द्रह वर्ष के थे। युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमंत्रण भेजे गए थे। पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था।

महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिंधकर वीरगति को प्राप्त हो गए थे। युद्धोपरांत महाराजा युधिष्ठर ने भगवान कृष्ण के नेतृत्व में जो राजा व राजपुत्र शेष रहे थे, उन्हें बिदा किया। महाराजा अग्रसेन ने लोक कल्याणार्थ किए गए यज्ञ में पशु बलि देने से इंकार कर दिया। इस प्रकार क्षात्रवर्ण की आहुति देकर वैश्य वर्ण को उन्होंने अपना लिया।