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जगदलपुरः जल-जंगल से भरा-पूरा रहने वाला प्रदेश, आज भीषण जल संकट के दौर में

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May 13, 2019

जगदलपुरः जल-जंगल से भरा-पूरा रहने वाला प्रदेश, आज भीषण जल संकट के दौर में

वैभव शिव पाण्डेय- जल-जंगल से भरा-पूरा प्रदेश छत्तीसगढ़ भी आज जलवायु परिवर्तन के बीच भीषण जल संकट से गुजरने लगा है। साल-दर-साल यह संकट तेजी से गहराते भी जा रहा है, क्योंकि अब गर्मी के आते ही नदियां सूखती जा रही हैं। तालाब सूखे जा रहे हैं। भू-जल स्तर नीचे गिरते जा रहा है। हालात ये हो गया है कि छत्तीसगढ़ के भीतर पहली बार ऐसा हुआ बस्तर का चित्रकोट जल प्रपात तक बे-धार हो गई। इंद्रावती हो या शिवनाथ, खारुन हो या अरपा, या फिर छत्तीसगढ़ की आधार महानदी सभी अस्तिव की लड़ाइयां लड़ रही हैं।

बस्तर के भीतर में इंद्रावती को बचाने लोग निकले पदयात्रा पर

इन तस्वीरों को देखिए, अंदाजा लगाइए कि हालात क्या से क्या होते जा रहे हैं। नदियां सूखती जा रही हैं, तालाब सूखते जा रहे हैं। जल संकट के भयानक खतरे के बीच अगर हम गैर-जिम्मेदार बन गए तो नजारा अब इसी तरह दिखाई देगा। हमे जल स्त्रोतों को बचाने के लिए इसी तरह से आगे आना होगा, जैसे इन दिनों बस्तर के भीतर में इंद्रावती को बचाने लोग पदयात्रा कर रहे हैं।

ये यात्री तो इंद्रावती को बचाने निकले हैं। यह बताने के लिए निकले हैं कि सरकार जागिए। आपको सिर्फ निर्माणों कार्यों तक ही विकास को नहीं परिभाषित करना है बल्कि गहराते जल संकट से भी उबारना होगा। इसके लिए नदियों पर मंडारते अस्तिव के खतरे को समझना होगा। वैसे यह जन-जागरण हम सबके लिए भी जरूरी है। जिस तरह से नदियों पर एनीकेट बना-बना पानी बेचने का काम हुआ, उससे भी बड़ा खतरा नदियों पर मंडरा रहा है।

नदियों को बचाने के जन-जागरण अभियान में हम सभी को आगे आना होगा

इस जन-जागरण अभियान का असर पता नहीं कितना होगा लेकिन जो कुछ हो रहा वह संकेत है कि यदि अब भी हम जल-जंगल को नहीं बचा पाए, या बचाने आगे नहीं आए तो स्थिति एक दिन ऐसी आयेगी कि सामने सिर्फ नदियां या तालाब मरते हुए ही नजर नहीं आएंगे, बल्कि हम सब पानी के अभाव में प्यासे तड़पते दिखेंगे।

बस्तर के जंगल के भीतर निवासरत् आदिवासी भीषण गर्मी सबसे ज्यादा परेशान है क्योंकि पहुँच विहिन गाँवों की सच्चाई ये है कि वे झरिया का पानी पीने को मजबूर हैं या फिर उन्हें कोसों पैदल चल पानी लाना पड़ रहा है।

नदियों के अस्तित्व की लड़ाई में जन भगीदारी की आवश्यकता

आज छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की जीवन दायिनी अरपा मरी हुई नदी बन चुकी है। रायगढ़ में केलो मर चुकी है। कोरबा-जाँजगीर में हसदेव उद्योगपतियों के हिस्से में है। गरियाबंद में सोढ़ूर-पैरी बरसाती नदी बन चुकी है। रायपुर में खारुन तड़प-तड़प के मरने के कगार पर है। दुर्ग में शिवनाथ और धतमरी-राजिम-महासमुंद महानदी पर एनीकेट की मार से धार टूट गई है। बाकी नाले और तालाबों अब गिने-चुने ही शेष रह गए हैं। छत्तीसगढ़ नदी, नाले, तालाबों के गढ़ के रूप में विख्यात रही है, लेकिन अब यह पहचान खोने को है।