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चुनावी शोरगुल के बीच पढ़िए एक ऐसे परिवार की कहानी जो कभी बस्तर की आवाज हुआ करता था..

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Apr 9, 2019

आशुतोष तिवारी : लोकसभा चुनाव की तारीखें जैसे जैसे पास आ रही हैं, चुनावी रैलियों व सभाओं के शोर उतने ही बढ़ते जा रहे हैं। इन चुनावी शोरगुल के बीच आज हम आपको एक ऐसे परिवार की आवाज सुनाएंगे जो कभी बस्तर की पहली आवाज हुआ करता था। आज हम आपको एक ऐसे परिवार से मिलवाएंगे जिनके पूर्वज बस्तर के पहले सांसद हुए तो उनके बेटे भी आगे चलकर विधायक बने। हम बात कर रहे हैं 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में बस्तर लोकसभा से प्रचंड बहुमत से विजयी हुए मुचाकी कोसा की और उनके विधायक मुचाकी देवा की जिनका परिवार आज बदहाली में जीवन यापन करने को मजबूर है। चुनाव के वक़्त घर घर जाकर वोट मांगने वाले उनकी पार्टी के जिम्मेदार अब तक बस्तर में लोकतंत्र के इस पहले पुजारी के घर नहीं पहुंच पाए हैं।

बस्तर राजनीतिक इतिहास के लिए ये गांव बहुत ही महत्वपूर्ण
जगदलपुर से लगभग 70 किमी दूर सुकमा जिले का कुकानार है और कुकानार से लगभग 10 किमी अंदर की ओर एक गांव है इड़जेपाल। गांव तक पहुंचने के लिए एक पक्की सड़क है जिसकी स्थिति काफी खराब है। यह गांव बस्तर राजनीतिक इतिहास के लिए काफी महत्वपूर्ण है वजह यह है कि इस गांव ने बस्तर को पहला सांसद दिया और दो विधायक भी। 1952 में जब देश का पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो इडजेपाल के निवासी मुचाकी कोसा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और कांग्रेस के सुरती किस्तैया को लगभग एक लाख चालीस हजार मतों से पराजित किया था। आगे चलकर मुचाकी कोसा ने भाजपा में प्रवेश किया और उनके बेटे मुचाकी देवा ने भी विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक बने। मुचाकी कोसा के पड़ोस में रहने वाले वेट्टी जोगा ने भी कोंटा विधानसभा से चुनाव लड़ा था और विजयी हुए थे। पर बस्तर की राजनीति को एक सांसद और दो विधायक देने वाले इस गांव को आज भी स्वयं के विकास का इंतजार है। मुचाकी कोसा और उनके बेटे मुचाकी देवा अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनका परिवार आज बदहाली में जीवन यापन कर रहा है। 

मुचाकी कोसा परिवार के सदस्य का क्या है कहना?
मुचाकी कोसा के परिवार के मुचाकी शंकर बताते हैं कि उनके परदादा और दादा सांसद और विधायक रह चुके हैं पर आज परिवार की स्थिति काफी खराब है। परिवार में ज्यादातर लोग अनपढ़ हैं और वनोपज व खेती पर आश्रित हैं। पूरा परिवार कच्चे मकान में रहता है, इन्हें न तो प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला और न ही उज्ज्वला योजना का। शौचालय तो बना पर आधा अधूरा। अफसोस कि बात यह है कि ये सारी योजनाएं उनकी ही पार्टी की हैं। शंकर बताते हैं कि उनके परदादा ने जिस भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन देते हुए उसे आगे बढ़ाया उसी पार्टी के जिम्मेदार आजतक उनकी सुध लेने नही  पहुंचे। परिवार ने आज भी उनके परदादा व दादा को मिले प्रमाणपत्रों को बड़े जतन से संभाल कर रखा है और पार्टी की इतनी नजरअंदाजी के बाद भी घर पर एक बड़ा सा भाजपा का झंडा लगा रखा है।