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सुपेबेडा गॉव एक बार फिर सुर्खियों में, विधानसभा में पेश किये गये गलत आंकड़े

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Nov 26, 2019

पुरूषोत्त्म पात्रा : गरियाबंद का किडनी प्रभावित सुपेबेडा गॉव एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है, फिर चाहे वो विधानसभा में पेश किये गये आंकडो के कारण हो या फिर ग्रामीणों द्वारा ईलाज कराने से मना करने के कारण हो, चारों और सुपेबेडा को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है और हर कोई सुपेबेडा की हकीकत जानने को उत्सुक है।

सरकार ने विधानसभा में पेश किये आंकड़े
मौत का आंकडा 56 से बढकर 71 हो गया, सुपेबेडा की बीते एक साल में यही पहचान है, मगर कल सरकार द्वारा विधानसभा में पेश किये गये आंकडो ने सबको चौंका दिया जिसमें सरकार ने दावा किया है कि सुपेबेडा में बीते साल में कोई मौत नहीं हुयी, जब सरकार विधानसभा में ये आंकडे पेश कर रही थी उसी समय सुपेबेडा में स्वास्थ्य कैंप चल रहा था जहॉ डॉक्टर मरीजों के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे, मगर दिनभर में महज 10 मरीज ही ईलाज कराने पहुंचे, जबकि सरकारी आंकडो के मुताबिक गॉव में दो सौं से ज्यादा किडनी के मरीज है, फिलहाल ज्यादातर ग्रामीणों ने ईलाज कराने से साफ मना कर दिया है, ग्रामीणों के मुताबिक ईलाज से कोई फायदा नही है, बल्कि उनके गॉव का नाम बार बार मीडिया में आने से उनके समाजिक संबंध खराब हो गये है, ग्रामीणों ने अब बीमारी का ईलाज कराने की बजाय अपने समाजिक संबंध ठीक करने का फैसला लिया है।

सुपेबेडा में किडनी के मरीज मौजूद
सुपेबेडा में किडनी के मरीज बडी संख्या में मौजूद है कई रिपोर्टस में इस बात का खुलासा हो चुका है, उऩमें से कुछ मरीजों की मौत भी हो हुयी है जिसके चलते मौत का आंकडा 71 पार कर चुका है, कल शिविर में स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर एसके विंदवार के साथ पहुंचे नेफ्रोलॉजिस्ट डॉक्टर विनय राठौड ने भी माना कि अभी भी नये मरीज सामने आ रहे है, उन्होंने ये भी दावा किया कि मरीजों के साथ तालमेल बिठाने में थोडा समय लगता है और वे इसके लिए काम कर रहे है, इसके साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को निशुल्क दवाई वितरण किये जाने की भी बात कही है।

सुपेबेडा में किडनी की बीमारी से एक भी मौत का जिक्र नहीं
अजीब बात है कि सरकार सुपेबेडा में किडनी की बीमारी से एक भी मौत नही होने का दावा कर रही है और गॉव में मरीजों को किडनी की दवाई वितरण करवा रही है, ग्रामीण बीमार है मगर ईलाज कराना नही चाहते, ऐसे में सवाल उठना लाजमि है कि आखिरकार सरकार को विधानसभा में ऐसे आंकडे क्यों पेश करने पडे और ग्रामीण ईलाज के लिए क्यों मना कर रहे है, कही ऐसा तो नही कि सरकार के पास सही जानकारी ही नही है और ग्रामीणों को सही ईलाज ही नही मिल रहा है जिसके चलते ये स्थितियां निर्मित हो रही है।