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राजस्थान में क्यों नहीं चलता गहलोत का जादू ?

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May 28, 2019

- रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान में हुये लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू नहीं चला। कांग्रेसी हल्को में अक्सर चर्चा रहती है कि अशोक गहलोत एक बड़े जादूगर जो जादू के दम पर सब कुछ कर सकते हैं। मगर जादूगर के राज में कांग्रेस राजस्थान की 25 की 25 सीट हार गयी। यहां तक कि जादूगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत को जोधपुर लोकसभा सीट से भी नहीं जीता सके। चर्चा है कि राजस्थान में करारी हार पर मुख्यमंत्री गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जमकर निशाने पर लिया था।

दिसम्बर 2018 में सम्पन्न हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटे जीत कर प्रदेश में बड़े धूमधड़ाके के साथ सरकार बनायी थी। मगर 2019के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश के मात्र 15 विधानसभा क्षेत्रो में ही बढ़त मिल पायी है। इससे लगता है कि कांग्रेस तेजी से अपना जनधार खोती जा रही है।

दिसम्बर 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस को एक करोड़ 39 लाख 35 हजार 201 वोट मिले थे वहीं भाजपा को एक करोड़ 37लाख 57 हजार 502 वोट मिले थे। तब कांग्रेस को प्रदेश में भाजपा से एक लाख 77 हजार 699 वोट वोट ज्यादा मिले थे। मगर ठीक पांच माह बाद हुये लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से करारी शिकस्त मिली। लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत तो बढ़ा ही साथ में भाजपा को कांग्रेस से 82 लाख 34 हजार 101 (24.25 फिसदी) वोट अधिक मिले। भाजपा को जहां एक करोड़ 88 लाख 75 हजार 720 (58.47 फीसदी) वोट मिले वहीं कांग्रेस को एक करोड़ 06 लाख 41 हजार 619 (34.24 फीसदी)वोट मिले हैं।

अशोक गहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने हैं। विधानसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलेट मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे। मगर चुनावो में जैसे ही कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आयी वैसे ही गहलोत ने कांग्रेस के दिल्ली दरबार में अपने संपर्को के बल पर मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गये। सचिन पायलेट व उनके समर्थक मुंह ताकते रह गये। पायलेट को उप मुख्यमंत्री बनकर ही संतोष करना पड़ा। जबकि विधानसभा चुनाव में पायलेट मुख्यमंत्री पद के सबसें बड़े चेहरे माने जाते थे।

अपने समर्थकों से खुद को राजस्थान का गांधी कहलवाना पसंद करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पिछला रिकार्ड देखा जाये तो वे कभी जनाधार वाले नेता नहीं रहे। राजस्थान के मतदाताओं पर कभी उनका जादू नहीं चला। हमेशा वो राजनीतिक जोड़तोड़ करके ही सत्ता पाते रहें हैं। इंदिरा गांधी सरकार में उपमंत्री, राजीव गांधी व नरसिम्हा राव सरकार में राज्य मंत्री रहे गहलोत के अध्यक्ष रहते 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की सभी 25 सीटें हार गयी थी उस वक्त गहलोत स्वंय भी भाजपा से चुनाव हार गये थे।

1998 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने परसराम मदेरणा को आगे कर जाट मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर लड़ा था। मगर विधानसभा में बम्पर 153सीट जीतते ही गहलोत ने परसराम मदेरणा को किनारे कर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे थे। उस समय मदेरणा के नाम पर कांग्रेस को भरपूर समर्थन देने वाले जाट मतदाता देखते रह गये थे। गहलोत ने मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष बनाकर सक्रिय राजनीति से किनारे लगा दिया था।

मदेरणा को मुख्यमंत्री नहीं बनाने से नाराज प्रदेश के मतदाताओं ने 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 9 सीटो पर समेट दिया था। जबकि भाजपा ने प्रदेश की 16 सीटे जीती थी। 2003 का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में लड़ा गया था जिसमें कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा ने 120  सीटें जीतकर प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ अपने बूते सरकार बनायी थी। वहीं कांग्रेस 153 से घटकर मात्र 53 सीटो पर आ गयी थी।

2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 96 सीटे मिली मगर गहलोत ने बसपा के 6 विधायको को मंत्री बनाकर कांग्रेस में शामिल कर पांच साल सरकार चलायी। जोड़तोड़ से बनायी गयी सरकार हर मोर्चे पर असफल रही। प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ जनता में भारी आक्रोश व्याप्त हो गया। जनता का गुस्सा कांग्रेस पर 2013 के विधानसभा चुनाव में फूटा। कांग्रेस 102 से सिमटकर 21 पर आ गयी। वहीं भाजपा को बम्पर 163 सीटे मिली। उसके बाद मई 2014 के लोकसभा चुनाव में तो प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। प्रदेश की सभी 25 सीट भाजपा ने जीत ली ।

जोड़तोड़ कर अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने से प्रदेश के मतदाता बहुत नाराज है। इसी का परिणाम है कि जोधपुर में गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को भाजपा के केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 2 लाख 74 हजार 440 वोटो के भारी अंतर से हरा दिया। अपने बेटे को जिताने के लिये गहलोत ने जोधपुर में आठ मंत्री व तीन दर्जन विधायक तैनात कर रखे थे। गहलोत ने स्वंय जोधपुर लोकसभा क्षेत्र में करीबन 100सभायें की थी। अपनी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की फौज के साथ गहलोत जोधपुर में आटोरिक्शा में बैठकर घर-घर घूम कर वोट मांगने निकल पड़े थे।

इस बार के लोकसभा चुनाव में जाट, राजपूत, गूर्जर, अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में खुलकर मतदान किया। प्रदेश की आबादी में गूर्जरों की संख्या प्रभावशाली है। उनके वर्तमान में आठ विधायक हैं। विधानसभा चुनाव में सचिन पायलेट के नाम पर प्रदेश के गुर्जरो ने कांग्रेस के पक्ष में एक तरफा मतदान किया था मगर सचिन पायलेट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने का बदला लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मतदान करके लिया।

लोकसभा चुनाव में दलबदलू मानवेन्द्र सिंह व सुभाष महरिया को टिकट देना भी कांग्रेस को महंगा पड़ा। जयपुर ग्रामीण से विधायक कृष्णा पूनिया के स्थान पर किसी स्थानीय युवा को टिकट देते तो ज्यादा बेहतर होता। यदि वो हारता तो भी आगे चलकर कांग्रेस में नया नेतृत्व उभरता। झुंझुनू में श्रवणकुमार,  चूरू में रफीक मंडेलिया, दौसा में सविता मीणा, राजसमंद से देवकी नन्दन गुर्जर,  भीलवाड़ा से रामपाल शर्मा, झालावाड़ से प्रमोद शर्मा, जयपुर से ज्योति खंडेलवाल, जयपुर ग्रामीण से कृष्णा पूनिया तो ऐसे चुनाव लड़ रहे थे जैसे कांग्रेस ने खानापूर्ति करने के लिये प्रत्याशी उतारे हो।

राजस्थान कांग्रेस में आज जाट, राजपूत, ब्राम्हण, बनिया, मीणा, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यको में कोई जनाधार वाला नेता नहीं हैं। अधिकांश नेता लहर के भरोसे चलने वाले हैं। लहर होती है तो जीत जाते है अन्यथा उनका हारना तो तय ही रहता है। इन सभी जाति के बड़े व प्रभावशाली नेताओं को सुनियोजित  ढग़ से एक-एक कर कोने में लगा दिया गया है। अब सिर्फ चापलूस टाईप के लोंगो का सरकार में प्रभाव है।

तीसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही गहलोत ने अपने समर्थको को मलाईदार पदो पर बिठा कर उपकृत करना शुरू कर दिया है। कई ऐसे लोगों को पद दिये गये है जिनका जनता में कहीं कोई जनाधार नहीं हैं। कुछ लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर गहलोत के गुणगान में लगे रहते हैं, उनको सरकारी पदो पर बैठा दिया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी वामपंथी प्रभाव वाले लोगों को तरहीज दी जा रही है जिससे कांग्रेस में मेहनत करने वाले कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। जिसका खामियाजा कांग्रेस लोकसभा चुनाव में उठा चुकी है।

राजस्थान में दिन-प्रतिदिन बढ़ते बलात्कार की घटनाये, किसानो की आत्महत्याओं की घटनाओं में बढ़ोत्तरी, कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है। यदि मौजूदा स्थिति पर शीघ्र ही काबू नहीं पाया गया तो सरकार को और अधिक मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।

कांग्रेस संगठन में वर्षो से दिन-रात खपने वाले कार्यकर्ताओं को आगे लाकर सरकार में हिस्सेदारी नहीं दी गयी तो आनेवाला समय राजस्थान में कांग्रेस के लिये और अधिक दुश्कर हो सकता है। राजस्थान में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री व सचिन पायलेट प्रदेश अध्यक्ष रहेंगें या हटेगें इसका फैसला तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करेगें। मगर प्रदेश की जनता के मिजाज को देखते हुये कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में शीघ्र ही सरकार व संगठन में बदलाव नहीं करता है तो आने वाले समय कांग्रेस के लिये और अधिक मुश्किल भरा होगा।

आलेख:-

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वतंत्र पत्रकार