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क्या बागियो के दम पर बनेगी राजस्थान में अगली सरकार ?

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Dec 3, 2018

रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान में आगामी सात दिसम्बर को होने जा रहे 15 वीं विधानसभा के चुनाव में भाजपा व कांग्रेस दोनो पार्टियों को लगता है कि यदि किसी कारणवश पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बागी चुनाव लड़ रहे नेताओं के जीतने पर उनकी आसानी से घर वापसी करवाकर सरकार बनायी जा सकती है। 2008 में अशोक गहलोत ने इसी तरह जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई थी जो पूरे पांच साल तक चली भी थी। उससे पूर्व 1993 में भाजपा नेता भैंरोसिंह शेखावत ने भी बहुमत नहीं मिलने पर निर्दलियों के बल पर पांच साल सरकार चलाई थी।

हालांकि जोड़- तोड़ से बनायी गयी सरकारो को जनता ने मान्यता प्रदान नहीं की थी। 1993 में भाजपा नेता भैंरोसिंह शेखावत ने किसी तरह से सरकार तो बना ली थी मगर जोड़-तोड़ कर बनाई गयी सरकार के मंत्रियों की कार्यशैली जनता की इच्छा के अनुरूप नहीं रही। जिसका खामियाजा भाजपा को 1998 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा। 1998 में प्रदेश की जनता ने भाजपा को जोड़तोड़ कर सरकार बनाने का दण्ड दिया व भाजपा मात्र 33 सीटो पर ही सिमट कर रह गयी। जबकि कांग्रेस को बम्पर 153 सीटे मिली थी। इसी तरह अशोक गहलोत ने 2008 में बहुमत नहीं मिलने पर जोड़- तोड़ कर सरकार बनाई तो प्रदेश की जनता ने उन्हे भी खामियाजा चखा दिया। 2013 में अशोक गहलोत के नेतृत्व में लड़े गये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अब तक की सबसे कम मात्र 21 सीटो पर ही सिमट जाना पड़ा था। जबकि प्रदेश की जनता ने भाजपा को ऐतिहासिक 163 सीटों पर जिता कर 2008 का बदला सूद के साथ चुका दिया था।

प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा को इस बार सत्ता विरोधी माहौल का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश में कुछ माह पूर्व तो ऐसा लग रहा था कि चुनाव होते ही कांग्रेस की सरकार बन जायेगी। अलवर व अजमेर लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने कांग्रेस के मनोबल को और बढ़ा दिया था। लेकिन कांग्रेस में टिकट वितरण में मचे घमासान ने कांग्रेस को बैकफुट पर धकेल दिया। बीकानेर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे बीडी कल्ला का पहले टिकट कटना फिर बवाल मचने पर वापस मिलना, नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी द्वारा कैन्हयालाल झंवर का टिकट कटने पर स्वंय भी चुनाव नहीं लडऩे की धमकी देने की घटना से कांग्रेस की छवि को नुकसान ही हुआ है।

कांग्रेस में दलबदल कर दूसरी पार्टियों से आये लोगो को टिकट देने से पार्टी में वर्षो से काम कर रहे वफादार कार्यकर्ताओ को निराश किया है। उपर से पांच सीट ऐसे सहयोगी दलो के लिये छोड़ दी जिनका प्रदेश में काई नामलेवा भी नहीं बचा था। इसी का परिणाम है कि आज बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने अपने 35 नेताओं को बगावत करने पर पार्टी से निष्कासित भी किया है। मगर फिर भी अभी कई नेताओं को मनाया जा रहा है। बागी चुनाव लड़ रहे नेताओं से कांग्रेस के बड़े नेता इस आाशा से लगातार सम्पर्क बनाये हुये हैं कि यदि वे चुनाव जीत जाते हैं व इनके समर्थन की दरकार पड़ती है तो उनको मनाकर समर्थन लिया जा सके।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री महादेवसिंह खण्डेला का कांग्रेस ने 1993 में टिकट काट दिया था तब उन्होने निर्दलिय जीत कर फिर से कांग्रेस में शामिल हो गये थे। टिकट कटने पर खण्डेला निर्दलिय मैदान में हैं व मुख्य मुकाबल में बने हुये हैं। ऐसे में उनके जीतने के कयास लगाये जा रहे हैं। दूदू से कई बार विधायक व मंत्री रहे बाबूलाल नागर को 2012 में किसी महिला के साथ बलात्कार करने के आरोप में जेल जाना पड़ा था। उस कारण 2013 में उनके स्थान पर उनके भाई हजारीलाल नागर को कांग्रेस टिकट मिला था मगर वो चुनाव हार गये थे। कुछ दिनो पूर्व बाबूलाल नागर को स्थानीय न्यायालय ने दोष मुक्त कर दिया था। इस पर उन्होने पार्टी से टिकट मांगा मगर कांग्रेस ने उनका टिकट काट कर रितेश बैरवा को दे दिया। अपनी टिकट कटने पर बाबूलाल नागर निर्दलिय चुनाव लड़ रहें हैं। क्षेत्र में उनके प्रभाव को देखते हुये लगता है कि वो सीट निकाल भी सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस नेता उनसे सम्पर्क में हैं।

राजस्थान की पूर्व उपमुख्यमंत्री व त्रिपुरा,गुजरात व मिजोरम की राज्यपाल रह चुकी कमला के पुत्र आलोक का शाहपूरा से कांग्रेस टिकट काट दिया गया है। अब आलोक वहां से निर्दलिय चुनाव लड़ रहे हैं जिससे कांग्रेस प्रत्याशी मनीष यादव मुश्किल में घिरे हुये नजर आ रहे हैं। सीकर जिले की नीमकाथाना सीट पर पूर्व विधायक मोहनमोदी के पुत्र सुरेश मोदी कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहें हैं। उनके सामने कांग्रेस से पूर्व विधायक रहे रमेश खंडेलवाल हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से चुनाव मैदान में हैं। इससे कांग्रेस प्रत्यासी सुरेश मोदी की स्थिति कमजोर हो रही है। 2013 के चुनाव में रमेश खण्डेलवाल कांग्रेस टिकट पर मैदान में थे व सुरेश मोदी उनके सामने निर्दलिय लड़े थे तब दोना हार गये थे।

तारानगर सीट पर पूर्व वित्त मंत्री चन्दनमल बैद के पुत्र व पूर्व विधायक डा.सी एस बैद का टिकट काट कर पूर्व सांसद नरेन्द्र बुडानिया को दे दिया गया। वहां डा.सी एस बैद निर्दलिय चुनाव लड़ रहे हैं। जिनको लोगो की सहानुभूति प्राप्त हो रही है। जयपुर शहर की हवामहल सीट से पूर्व मंत्री बृजकिशोर शर्मा का टिकट काट कर जयपुर के पूर्व सांसद महेश जोशी को प्रत्याशी बनाया गया है जिससे बृजकिशोर शर्मा बहुत नाराज है। बृजकिशोर शर्मा के पिता नवलकिशोर कांग्रेस के बड़े नेता थे व जयपुर, दौसा व अलवर से सांसद, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, केन्द्र में मंत्री, गुजरात के राज्यपाल व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे थे।

पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिय़ा के बेटे संजय पहाडिय़ा, पूर्व मंत्री हरेन्द्र मिर्धा, चौ.कुम्भाराम आर्य की पुत्र वधू सुचित्रा आर्य को भी टिकट नहीं दिया गया है। सिरोही से दो बार कांग्रेस के विधायक रहे संयम लोढ़ा कांग्रेस टिकट नहीं मिलने पर निर्दलिय चुनाव लड़ रहे हैं।

कांग्रेस की तरह भाजपा भी अपने बागियो से लगातार सम्पर्क साधे हुये है। हालांकि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में बागी नेताओ की सख्ंया कम है, क्योंकि भाजपा कई प्रभावशाली बागियों को समय रहते मना कर उनका नामांकन फार्म उठवाने में सफल रही थी। जबकि कांग्रेस अपने बड़े नेताओं में तालमेल की कमी के चलते ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो पायी थी।

राजस्थान की भाजपा सरकार में मौजूदा मंत्री सुरेन्द्र गोयल ने जैतारण से, हेमसिंह भडाना ने थानागाजी से राज्यमंत्री राजकुमार रिणवा ने रतनगढ़ से, धनसिंह रावत ने बांसवाड़ा से अपनी टिकट कटने के बाद निर्दलिय ताल ठोक रखी हैं। निर्दलिय चुनाव लडऩे पर इन मंत्रियो को भाजपा से तो निष्कासित कर दिया गया है मगर राज्य मंत्रीमंडल से इनको अभी तक नहीं हटाया जाना भाजपा नेतृत्व की इनके प्रति सहानुभूति ही दर्शाता है। यदि किसी कारणवश मंत्रीमंडल की बैठक बुलानी पड़े तो भाजपा से निष्कासित चारों मंत्री भी बैतोर मंत्री मंत्रीमंडल की बैठक में शामिल होंगे जब तक कि उनको मंत्री मंडल से हटाया नहीं जाता।

बसपा व हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतात्रिक पार्टी से चुनाव लड़ रहे कई जिताऊ उम्मीदवारों पर भी दोनो दलो के नेताओं की नजर है। जिनसे जरूरत पडऩे पर मदद ली जा सके। कुल मिलाकर वर्तमान हालात में प्रदेश में दोनो मुख्य दलो में अगली सरकार बनाने को लेकर मंथन चल रहा है। अगली सरकार किस पार्टी की बनेगी इस बात का फैसला प्रदेश की जनता को आगामी सात दिसम्बर को करना है। तब तक सभी दलो के नेता पूरे जोर-शोर से अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को जिताने में लगे हुये हैं।

आलेख:-

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वतंत्र पत्रकार