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जिंदा व्यक्ति का डेथ सर्टिफिकेट, व्यक्ति के नामों की बाजीगरी में उलझा प्रशासन

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Aug 19, 2017

सागर : जिले में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया हैं। जहां एक जिंदा व्यक्ति अपने जारी हुए  डेथ सर्टिफिकेट को झूठा साबित करने के लिए राजस्व कोर्ट में ढाई साल की लंबी लड़ाई लड़ता रहा। नामों की बाजीगरी में प्रशासन उलझा रहा। खबर शहर के पुरव्याउ टौरी के चौरसिया परिवार की  जमीन विवाद से जुड़ी हैं। इसमें भतीजे ने चाचा को मृत बताकर संपत्ति हड़प ली।

तहसील विभाग में पेशी करने पहुंचे शख्स शम्भू दयाल चौरसिया उर्फ सुन्नु के हाथ में इन्ही का डेथ सर्टिफिकेट हैं। इनका आरोप हैं कि इनके सगे भतीजे ने ही इनका जाली डेथ सर्टिफिकेट बनवाकर इनकी 59 डिसमिल जमीन हड़प ली। दरअसल यह रिटार्यड सब- इंजीनियर हैं और घरेलु विवाद की वजह से भोपाल में रहने लगे हैं। नामों की वजह से यह पूरा विवाद राजस्व कोर्ट तक पहुंच गया। पीड़ित शम्भू दयाल बताते हैं कि उन्होंने 1990 में तिली मौजे में 59 डिसमिल जमीन खरीदी थी। जिसकी रजिस्ट्री उनके चालु नाम सुन्नु के नाम पर हुई थी। पीड़ित का कहना हैं कि उनके 5 भाई हैं, जिसमें वो चौथे नम्बर के हैं।

उनके बड़े भाई मुन्नू लाल चौरसिया का देहांत 1996 में हो गया था। मुन्नू के बेटे नवीन ने अपने पिता मुन्नू लाल चौरसिया  के डेथ सर्टिफिकेट में हेराफेरी कर  2015 में मुन्नू लाल के आगे उर्फ सुन्नु दर्ज करवाकर वारिस के तौर पर  शम्भूदयाल की 59 डिसमिल जमीन हड़प ली। शम्भु को जब इसकी भनक लगी तो वो मामले को राजस्व कोर्ट में ले गए। कोर्ट भी सुन्नु और मुन्नू के नामों में ढाई साल उलझा रहा। शम्भु दयाल अपने जीवित होने की लड़ाई तो जीत गए, लेकिन जमीन का मामला अभी जस के तस हैं। 

शम्भू दयाल के भाई महेश चौरसिया ने राजस्व कोर्ट में अपना शपथपत्र भी दिया हैं कि मृतक मुन्नू लाल अपने आगे उर्फ सुन्नु नहीं लिखते थे। इतना ही नहीं उन्होंने शपथ पत्र में यह दावा भी किया हैं कि शम्भू दयाल का नाम सुन्नु हैं। बहरहाल शम्भु दयाल की लड़ाई अभी बाकी हैं।

वहीं राजस्व विभाग के अधिकारी का कहना था कि शम्भु दयाल जिंदा हैं और वो पेशी करने आते हैं। सुन्नु के नाम की जमीन के विवाद पर उनका कहना हैं कि सरकारी दस्तावेजों में किसी भी पक्ष ने अपने नाम के आगे उर्फ नाम सुन्नु के दस्तावेज कोर्ट को प्रस्तुत नहीं किये हैं। इस वजह से उन्होंने यह केश खारिज कर दिया हैं। तहसीलदार का कहना हैं कि सुन्नु नाम की लड़ाई का केश सिविल कोर्ट में ही लड़ा जाएगा। राजस्व में ऐसे मामलों पर फैसले नहीं होते हैं।

कई पेशियां की, कई बार तहसील कार्यालय के चक्कर काटकर ढाई साल तक यहां से वहां ठोकरे खाकर शम्भू दयाल उर्फ सुन्नु जिंदा साबित करने में जुटे हैं।