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आदिवासियों को ऐसी जगह किया विस्थापित जहां सुविधाओं के नाम पर हैं चारों तरफ जंगल

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Sep 8, 2018

देवेंद्र पटेल : हाल ही में अभी कुछ दिनों पहले पूरे देश और प्रदेश में विश्व आदिवासी दिवस बनाया गया और इसी कड़ी में होशंगाबाद जिला प्रशासन ने भी केसला में आदिवासी उत्सव आयोजित किया, परंतु सारे दावे खोखले है। जी हां इंसान से जानवरों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं विस्थापित आदिवासी,उन्हें ऐसी जगह विस्थापित कर दिया गया जहां बुनियादी सुविधाओं के नाम पर चारों तरफ जंगल है।बिजली,पानी,सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से कोसो दूर हैं ये भोले भाले आदिवासी जो कि विस्थापित तो कर दिए गए परंतु आज बद से बदतर जीवन जीने को मज़बूर हैं।स्कूल तो क्या आँगड़वाडी की कोई व्यवस्था नहीं है,नौनिहाल और गर्भवती महिलाएं स्वास्थ्य सुविधाओं को मोहताज़ हैं।

मामला होशंगाबाद का है जहां सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व की जद में आये विस्थापित नयागांव और माना के आदिवासी अब अधिकारियों से जुमला सुन रहे हैं मुस्कुराइए आप जंगल में हैं। कीचड़ से सने रास्ते,बिजली की कोई व्यवस्था नहीं,पीने के पानी के लिए मीलों दूर का सफर। 

प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी और उदासीनता ने इन आदिवासी ग्रामीणों को कुछ ऐसी ही बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया है बारिश के मौसम में न पीने के लिए पानी है और न चलने के लिए न ही पक्की सड़कें ऐसे में यह ग्रामीण आदिवासी बिजली और स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में सोच भी नही सकते यह नज़ारा बागरा तवा के पास विस्थापित किये गये नयागांव माना का है जहां सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में बसे दो गांव के लोग विस्थापित कर किस्मत के भरोसे छोड़ दिये गये हैं कहने के लिए विस्थापितों को यहां आये एक साल से ऊपर हो गया है पर न तो गांव में बिजली है ना ही पीने के लिए पानी,किलोमीटरों का सफर तय कर पानी लाते हैं। कहने के लिए सरकार ने इक्का दुक्का हैंडपम्प खुदवाये थे परंतु वे भी कुछ दिनों में ही सूख गए।अब ग्रामीणों का सवाल है की ऐसा पैसा और जमीन किस काम की।

वहीं अधिकारियों का जवाब है की 3 वर्षों में व्यवस्थाएं पूर्ण करने की जिम्मेदारी है जो भी व्यवस्थाओं में कमी है उन्हें पूर्ण करवाएंगे। अधिकारियों का तंज भरा जवाब तो ऐसा है जो तोहफा मिला है उसे कबूल कर लीजिए,हमारी जिम्मेदारी,परेशानी आपकी,और ग्रामीणों को उस जुमले की याद दिला रहे हैं कि मुस्कुराइए आप जंगल में हैं।