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बहुत ही हर्ष के साथ मनाया गया किसानों द्वारा बैलों का त्योहार, पोला पर्व

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Sep 9, 2018

तारेन्द्र सोनी - भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है जहां कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले साधनों में भगवान शिव के वाहन नंदी के रूप बैलों को सर्वोपरि माना जाता है इसीलिए किसानों द्वारा बैलों का त्योहार पोला पर्व मनाने की प्रथा है उमरेठ में भी परम्परा अनुसार इसदिन बैलों को नहला कर विभिन्न रंगरोगन कर वेशभूषा पहना कर तैयार किया जाता है। ग्रामों में सभी किसान अपनी-अपनी बैल जोड़ी की लेकर एक निश्चत स्थान पर इकट्ठा होते हैं जहां ग्राम कोटवारों द्वारा कांस से निर्मित तोरन उचे खम्बों पर बांधी जाती है जिसके नीचे बैलों को कतारबद्ध तरीके से खड़ा किया जाता है।

लगाये जाते है नारे

सभी किसान इस दौरान जोर जोर से "ईड़ा बीड़ा खट कीड़ा लेजा री नारबोद, जो कोई मेरे बैल की चुगली करे उसको खा जा भैसासोर" के नारे लगाते हैं। ग्राम के प्रबुद्ध वर्ग के नागरिकों की समिति एवं ग्रामपंचायत के पदाधिकारियों द्वारा साजसज्जा, रंगरोगन, बैलों की कदकाठी में श्रेष्ठता के आधार पर जोडियों का चयन कर उन्हें पुरुस्कार प्रदान किया जाता है।

बैलों की पूजा अर्चना की जाती है

तत्पश्चात तोरन तोड़कर लूटी जाती है लूटी गई तोरन के छोटे-छोटे टुकड़े किसान अपने घरों में अनाज भण्डारण के साथ अपने द्वार पर लगाते हैं ऐसा मानना है कि इससे वर्ष भर घर मे सुख शांति समृध्दि बनी रहती है और भंडार भरा रहता है। फिर सभी किसान अपनी-अपनी बैलजोड़ियों को अपने घरों में ले जाकर जल से उनके पैर पखार कर उनकी आरती उतार कर पूजन करते है।

मिट्टी से बने बैलों की भी की जाती है पूजा

पोले के दिन अन्य पकवानों के साथ विशेष रूप से बनाया जाने वाला पकवान सेव, खुरमा तथा गुझिया उन्हें खिलाते हैं तथा बैलों की सेवा करने वाले चरवाहों को भी पुरुष्कार देकर भोजन कराया जाता है जिन किसानों के घर बैल नहीं होते वे मिट्टी से बने बैलों की पूजा करते हैं।