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ग्वालियरः कृषि विश्वविद्यालय में करोड़ों रूपए का घोटाला आया सामने

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Jun 18, 2019

विनोद शर्मा- किसानों के नाम पर घोटाले आपने सुने ही होगें, लेकिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में कृषि विश्वविद्यालय में करोड़ों रूपए का घोटाला समाने आया है। जहां राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर और इससे संबद्घ पांच जिलों के शासकीय कृषि कॉलेजों में पिछले पांच वर्षों में 70 करोड़ रुपए के निर्माण कार्य 'इमरजेंसी' में हो गए। ये खुलासा आरटीआई में हुआ है। जबकि पिछले पांच सालों में एक भी टेंडर ऑनलाइन जारी नहीं हुआ। नियम के मुताबिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने ई-टेंडरिंग को अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में मामला ईओडब्लू के पास है और वो कभी भी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंधन में एफआईआर दर्ज कर सकती है।

अलग-अलग कार्यों में पूरे 156 करोड़ का हुआ घोटाला  

ग्वालियर के कृषि विश्वविद्यालय की जितनी बिल्डिंग खूबसूरत है।। उतना ही बड़ा भ्रष्ट्राचार इस विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ है। पिछले पांच वर्षों में ग्वालियर, उज्जैन, सीहोर,मंदसौर, खंडवा के शासकीय कृषि कॉलेजों में निजी निर्माण एजेंसियों को 5 लाख से लेकर साढ़े 5 करोड़ रुपए तक के काम दिए गए। दिलचस्प बात यह है कि इन एजेंसियों को ही बार-बार हर निर्माण कार्य का ठेका दिया जाता रहा। इन सभी ने मात्र 5 से 7 दिन में टेंडर फॉर्म खरीदकर, उसे भरकर जमा किया और इसी समय सीमा में इन्हें टेंडर मिल भी गए। ऐसे में आरटीआई एक्टिविस्ट का दावा है। ये घोटाला केवल 70 करोड़ का नहीं है, बल्कि 156 करोड़ का है। जो अलग-अलग निर्माण कार्य में हुए है।

पिछले पांच सालों में एक भी टेंडर ऑनलाइन जारी नहीं हुआ

पीडब्ल्यूडी वर्क मैन्युअल के हिसाब से टेंडर जारी होने के बाद उसे खरीदने, फॉर्म भरने, जमा करने, फीस चुकाने, स्कू्रटनी करने, टेंडर ओपन होने जैसी सभी प्रक्रियाएं पूरी करने के लिए कम से कम 28 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए, लेकिन साल 2011 से साल 2015 तक जितने भी निर्माण कार्यों के टेंडर जारी हुए, उनकी सभी प्रक्रियाएं मात्र 5 से 7 दिन में पूरी की गईं। इस दौरान गिने-चुने 7-8 लोगों को ही बार-बार ठेके दिए जाते रहे। पिछले पांच सालों में एक भी टेंडर ऑनलाइन जारी नहीं हुआ, जबकि भ्रष्टाचार रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने ई-टेंडरिंग को अनिवार्य कर दिया है। इस पूरी गड़बड़ी का खुलासा आरटीआई में होने के बाद अब विश्वविद्यालय प्रबंधन पर कभी एफआईआर दर्ज हो सकती है।

कृषि वैज्ञानिक को सौंप रखा है निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच

भ्रष्टाचार रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने ई-टेंडरिंग को अनिवार्य कर दिया। बावजूद इसके ठेके दिए जाने का काम विश्वविद्यालय का वर्क सेक्शन करता है। इसमें वर्कचार्ज पर काम करने वाले एक सब इंजीनियर आरके गुप्ता को छोड़कर अन्य कोई इंजीनियर ही नहीं है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. वायएम कूल को इस विभाग में कार्यपालन यंत्री का प्रभार देकर तकनीकी स्वीकृति की जिम्मेदारी दी गई है। पीडब्ल्यूडी वर्क मैन्युअल के हिसाब से निर्माण कार्यों की निगरानी, तकनीकी स्वीकृति और जांच के लिए अधीक्षण यंत्री, कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री और सब इंजीनियरों की टीम होनी चाहिए, लेकिन विश्वविद्यालय में यह सारा काम एक कार्यभारित सब इंजीनियर आरके गुप्ता और एक कृषि वैज्ञानिक पर छोड़ रखा है, जिसे लेकर पूर्व फाइनेंस कंट्रोलर ने प्रमुख सचिव के सामने आपत्ति भी उठाई थी कि एक कृषि वैज्ञानिक जिसके पास सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री तक नहीं है, वह कैसे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांच सकता है।