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मैहरः अतिक्रमण हटाने के नाम पर गाज गिरी गरीबों के घरों पर, दबंगों के घर सही सलामत

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Jul 29, 2019

विजय अग्रवाल- मैंहर के ग्राम भटिगवा में हटाये गए अतिक्रमण में भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाने की बात सामने आई है। जहाँ दबंगों का नहीं हटाया जा रहा अतिक्रमण और दलित आदिवासी का कच्चा मकान गिराए जा रहे, वो भी पूर्व नोटिस के बिना। जहॉ एक ओर सरकार गरीबों के रहने के लिए आवास योजना के अंतर्गत घर बना कर दे रही है, वहीं जिनके पास जमीन न हो पट्टा देने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर सतना जिले का प्रशासन घर गिरा रहा है।

रघुनाथ सिंह पटेल की याचिका पर हुई कार्यवाही

दरअसल मैंहर के ग्राम भटिगवा में ग्राम पंचायत भटीगवा जनपद पंचायत मैंहर थाना अंतर्गत देहात थाना नादन के ग्राम भटिगॅवा में चरनोई भूमि में से दलित आदिवासियों का अतिक्रमण हटाये जाने का निर्देश हाईकोर्ट से लेने के लिए एक याचिका रघुनाथ सिंह पटेल द्वारा की गई थी। जिसमें हाईकोर्ट के निर्देश पर चरनोई भूमि से अतिक्रमण हटाये जाने का मामला जब स्थानीय प्रशासन के अधिकारी मौके पर एसडीएम हेमकरन धुर्वे, एसडीओपी हेमन्त शर्मा, तहसीलदार रमेश कोल एवम जनपद सीईओ एवं विभिन्न थानों के पुलिस बल टीआई मैंहर डीपी सिंह चौहान थाना देहात नादन प्रभारी भूपेंद्र मणि पांडेय, अमदरा थाना प्रभारी एवम रामनगर अमरपाटन के साथ ही जिले से भी काफी संख्या में पुलिस बल पहुंचा। लेकिन मौके पर पहुंचे आला अधिकारियों ने उक्त चरनोई भूमि पर दलित आदिवासियों का अतिक्रमण तो औपचारिक तौर पर तो जेसीवी मशीन के द्वारा तो हटवा दिया।

प्रशासन पूरी तरह से दे रहा है गांव के दबंगों का साथ

विडम्बना यह है कि जिन दबंगों द्वारा उक्त चरनोई भूमि पर अतिक्रमण काफी संख्या में है, वहां से दबंगों का अतिक्रमण न हटाया जाना, जन चर्चा का विषय है। सूत्रों की माने तो अतिक्रमण हटाने गए अमले में भी यह देखा गया कि जहां उक्त चरनोई भूमि पर अन्य लोगों के कब्जे हैं जिसे हटाये जाने हेतु गांव के ग्रमीणों द्वारा जिले के कलेक्टर एवं स्थानीय एसडीएम मैंहर को व तहसीदार व्रत नादन को भी अतिक्रमण दबंगों के हटाये जाने के लिए कई बार आवेदन दिया गया था। यहां तक कि जन सुनवाई के दौरान कलेक्टर सतना को भी लिखित पत्र दिया गया, लेकिन इन ग्रामीणों की कहीं कोई सुनने वाला नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि हाईकोर्ट के दिशा निर्देशों का तो पालन किया जाना न्यायसंगत है लेकिन लगभग 52 एकड़ के इस शासकीय भूखण्ड पर जो दबंगों का अतिक्रमण है उसे भी हटाया जाना चाहिए। आदिवासियों का आरोप है कि उनकी बातों को अनसुना कर प्रशासन पूरी तरह से गांव के दबंगों का साथ दे रहा है।

बेघर होने के बाद आदिवासियों के रहने के लिए अब कोई ठिकाना नहीं

वहीं गरीबों के घर गिराने के बाद उनके रहने के ले अब कोई ठिकाना नहीं रह गया। सभी हरिजन आदिवासी खुले में रहने को मजबूर हैं। स्कूल से बच्चे लौटे भी, परंतु घर नहीं दिखा। घर की जगह चारों ओर सिर्फ गिरे हुये घर नजर आ रहे हैं। वहीं बच्चों को भूखा भी रहना पड़ा। सभी ग्रामीण उदास और मायूस नज़र आ रहे हैं। जहाँ कई बार निवेदन करने के बाद भी प्रशासन नहीं माना और घर गिरवा दिए गये। यही नहीं प्रधानमंत्री आवास के घर को भी नहीं बक्शा गया। प्रशासन ने ही सुविधा और योजना दी और उसी योजना के घर को गिरा कर शासन के पैसे का भी नुकसान कर दिया। सभी ग्रामीण की माने तो घर गिरा दिए, पर रहने की अन्यत्र कोई व्यवस्था शासन नहीं की। बारिश के मौसम में खुले में रहने को मजबूर हैं। वहीं क्षेत्र में पानी के लिए लगी टयूब बेल का भी एसडीएम द्वारा बिजली कनेक्शन काट दिया गया।