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ग्वालियरः महंगे कपड़े और महंगे शौक को पूरा करने के लिए छात्र बन रहे अपराधी

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Aug 22, 2019

धर्मेन्द्र शर्मा- ग्वालियर में बाहर से पढ़ाई करने शहर में आ रहे छात्र महंगे कपड़े और महंगे शौक को लेकर अपराध की दुनिया में जा रहे हैं। पुलिस ने पूर्व में 15 ऐसे छात्रों को पकड़ा था जो चेन स्नैचिंग और चोरियां करने लगे थे। बाहर से आने वाले ऐसे छात्रों का पुलिस डाटा तैयार नहीं करता है जिससे पुलिस को डाटा ना होने के कारण ऐसे छात्रों के बारे में पता करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

लूट, चैन स्नैचिंग और चोरियों की वारदातों को दे रहे अंजाम

दरअसल ग्वालियर शहर में पढ़ने के लिए छोटे कस्बे और अन्य जगहों से बच्चे आते हैं। उनके माता-पिता अपने बच्चों को यह सोच कर शहर भेजते हैं कि उनको अच्छी शिक्षा मिल सके। लेकिन माता-पिता को क्या पता कि जहां अच्छी शिक्षा के लिए भेज रहे हैं वहां उनके बच्चे नशे की लत व आधुनिकता के चक्कर में पड़ कर बर्बाद हो जायेंगे। ऐसे बच्चे नशे के शिकार तो होते ही हैं, उसके अलावा ब्रांडेड कपड़े और महंगे शौक भी बाल लेते हैं। फिर अपने इस शौक को पूरा करने के लिए पैसे कम पड़ जाने के बाद ऐसे छात्र पढ़ाई करने की बजाए, लूट, चैन स्नैचिंग और चोरियों की वारदातों को अंजाम देने में लग जाते हैं। ऐसे छात्र संगत और शौक में ही आगे चलकर अपराधी बन जाते हैं।

मकान मालिक और हॉस्टल संचालक छात्र का डाटा पुलिस थाने में नहीं देती

अगर 1 साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो पुलिस ने ऐसे 15 छात्रों को पकड़ा है जो चैन स्नैचिंग और चोरियो में लिप्त होना पाए गए है। जिसमें अधिकांश 80% छात्र नाबालिग निकले थे। अधिकांश छात्र चेन स्नेचिंग में पकड़े गए। अपराधी किस्म के छात्र सोचते हैं चेन स्नेचिंग आसान है और दाम भी अच्छे मिल जाते हैं, इसलिए सुनसान जगह पर महिला को टारगेट कर लूट करके भाग जाते थे। बाद में चैन बेचकर शौक पूरे करते थे। जब पुलिस ने ऐसे छात्रों को धर दबोचा तो उनसे कई लूट की वारदातों का पता चला था। तब अपराधियों ने पुलिस को बताया कि महंगे शौक के कारण ऐसी वारदातों को अंजाम देते थे। वहीं दूसरे शहरों से आने वाले छात्र कॉलोनी या मोहल्ले में किराए से कमरा लेकर या फिर हॉस्टल में रहते हैं। कई तो बिना जांच-पड़ताल के उन्हें रख लेते हैं। उनका पुलिस वेरीफिकेशन नहीं होता, जबकि मकान मालिक और हॉस्टल संचालक को छात्र का डाटा पुलिस थाने में देना चाहिए, लेकिन डाटा ना भेजने से पुलिस के पास भी इन छात्रों का कोई डाटा नहीं रहता। जब शहर में कोई वारदात हो जाती है तो पुलिस उन्हें ढूंढती रह जाती है।