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दमोहः पृथ्वी दिवस पर विशेष, बूढे कंधों ने पत्थरों पर खिला दिया बगीचा

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Apr 22, 2019

विजय श्रीवास्तव- जैसा कि हम सब जानते हैं 22 अप्रैल को हर वर्ष पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी की दशा पर चर्चाएं होती हैं, सैमिनार होती हैं, रैलियां निकाली जाती हैं, कई प्रकार के संकल्प लिए जाते हैं। अफ़सोस की बात यह है के अधिकतर यह सब कुछ आज भी केवल औपचारिकतावश या सरकारों के आदेशों के पालन में यह समारोहों के दृष्टिकोण से किया जा रहा है। ख़ुशी की बात यह है कि आम आदमी में पृथ्वी दिवस के प्रति जागरूकता बढ़ी है, इस बात को समझा जा रहा कि पृथ्वी ही जीवन है, पृथ्वी ही पालनहार है। पृथ्वी को बचाना मानव जाति को नष्ट होने से बचाना है।

मन हो हौसला तो कोई कुछ भी कर सकता है। ऐसा ही उदाहरण दमोह जिले के जबेरा ब्लॉक के एक पहाडी जमीन पर देखने को मिल रहा है। जहां एक बुजुर्ग ने खुद की दम पर पत्थरों के बीच पेडों का जंगल बनाने की ठान ली है और आज वर्तमान में यहां 6 सौ से अधिक हरे भरे पेड़ लग चुके हैं और परिपक्व हो रहे हैं।

बिना सरकारी मदद के जुगाड़ से खड़ा कर दिया पेडों का जंगल

जबेरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत हिनौती ठेंगापटी के पहाडी क्षेत्र में आज से पांच साल पहले गांव के एक बुजुर्ग त्रिलोक सिंह ने झोपड़ी बनाई और वहीं रहने लगा। इस पहाडी जमीन को, जो कि वन विभाग की है उसे त्रिलोक बाबा ने अपनी मां समझ कर हरा-भरा बनाने का प्रण कर लिया, लेकिन पानी की समस्या आड़े आ गई। इसका हल भी इन बाबा ने निकाल लिया। हुआ यूं कि ओएनजीसी द्वारा गैस की खोज करने के लिये जगह-जगह गढ्ढे किये गये थे। इन्हीं गढ्ढों में से एक गढढे में पानी निकल आया, तो ओएनजीसी वाले उसे छोड़ कर चले गये। यह गढ्ढा त्रिलोक बाबा के लिये वरदान बन गया। बाबा ने इस गढ्ढे में जुगाड़ से लकड़ी के डंडे में लोहे की नली फिट कर पानी निकालने का साधन बनाया और जुगाड से एंगिल व पत्थरों से हैंडपंप बना लिया। जिस तरह हवा के पंप से हवा निकाली जाती है उसी तरह इससे पानी निकालना शुरू कर दिया। पानी निकला तो इन पांच सालों में बाबा ने छह सौ से ज्यादा पेड़ लगाकर उन्हें पालना शुरू कर दिया। पांच सालों में पत्थरों की बीच ये पेड़ लहराने लगे और धीरे धीरे जंगल का आकार लेना शुरू हो गये हैं।

त्रिलोक बाबा की मेहनत और लगन से धरती को हरा-भरा करना शुरू किया

त्रिलोक सिंह बाबा का कहना है कि वनविभाग द्वारा जिले में जगह-जगह नर्सरी लगवाई गयी थी। वहीं पहाडों पर भी वृक्षारोपण करवाया था लेकिन उनमें से कुछ ही पेड़ बच पाये, बाकी बिना पानी के सूख गये। वहीं त्रिलोक बाबा द्वारा स्वयं की मेहनत, लगन व जुगाड़ से पहाडी क्षेत्र में जंगल बनाने का जो प्रयास किया जा रहा है वह सरकारी तंत्र की व्यवस्था पर करारा तमाचा है। एक मिसाल भी बनकर सामने आई है कि अगर मन में निश्चय हो तो कुछ भी असंभव नहीं है।