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जबलपुरः दबंगों की दबंगई से परेशान हुये आदिवासी

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Apr 15, 2019

फतेह सिंह ठाकुर- प्रदेश के जंगलों से लगे ग्रामों में रह रहे आदिवासी आज की आधुनिक दुनिया में भी अपना भरण पोषण नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि सीधे साधे आदिवासियों को दबंग लोग आज भी हर तरह से प्रताड़ित कर रहे हैं। जिसकी बानगी देखने मिली संस्कारधानी जबलपुर में, जहां पर लगे जंगलों के बीच वन भूमि पर किसी तरह खेती कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले कई आदिवासियों की जमीनों पर दबंगों ने अवैध कब्जा कर उनकी रोजी रोटी पर अंकुश लगा दिया है। इतना ही नहीं दबंगों ने अपनी दबंगई दिखाते हुए मुक्तिधाम का रास्ता तक बंद कर दिया है। क्या है पूरा मामला आइये जानते हैं।

ग्राउंड जीरो से स्वराज एक्सप्रेस की ये एक्सक्लूजिव ग्राउंड रिपोर्ट

जबलपुर स्थित जनपद शहपुरा अंतर्गत जंगलों के बीच आने वाली ग्राम पंचायत खुलरी के टोला देवरी में रहने वाले सैकड़ों आदिवासी आज अपनी किस्मत पर भरी धूप में खड़े होकर आंसू बहा रहे हैं। दरअसल धूप में खड़े इन आदिवासियों की जमीन पर जबलपुर शहर से जाकर अजित सिंह ने रिटायर डिप्टी रेंजर और स्थानीय सरपंच की मिली भगत के चलते अवैध कब्जा कर लिया है। इतना ही नही दबंगों ने मुक्तिधाम जाने वाले रास्ते को भी तार कर, फेंसिंग द्वारा उसे भी बंद कर दिया है। जिससे देवरी में रहने वाले सैकड़ों आदिवासियों की रोजी रोटी पर संकट मंडराने लगा है। हमारी टीम जब घने जंगलों से होकर ग्राम देवरी पहुंची तो हमारी टीम को देखकर आदिवासियों ने अपना दर्द बयां किया।

पीड़ित आदिवासियों की कहानी उन्ही की जुबानी

किस तरह आदिवासी स्थानीय सरपंच मुकेश तिवारी और जबलपुर निवासी अजित सिंह और अन्य दबंगो के बीच चल रही मिली भगत की दास्तां सुना रहे है, आइए अब आपको सुनाते है पीड़ित आदिवासियों की कहानी उन्ही की जुबानी।

जनपद शहपुरा में आने वाली ग्राम पंचायत खुलरी के सरपंच मुकेश तिवारी की इस पूरे मामले में बड़ी लापरवाही उजागर हो रही है क्योंकि आदिवासियों की शिकायत के बाद भी सरपंच महोदय ने अपने पद का इस्तेमाल पूरी ईमानदारी से नहीं किया। अगर सरपंच मुकेश तिवारी अपना काम ईमानदारी से करते तो उनकी ग्राम में आदिवासियों की जमीन पर अवैध कब्जा नहीं होता। लेकिन सरपंच की साठगांठ के चलते आज सैकड़ों आदिवासी अपनी किस्मत पर ही आंसू बहाने मजबूर है। यहां आपको बता दे कि सरपंच मुकेश तिवारी को सबसे पहले ग्राम पंचायत से एक नोटिस अवैध कब्जा धारियों को जारी करना था, जो सरपंच ने जारी नहीं किया। अलबत्ता 181 में जरूर उन्होंने शिकायत कर अपना पल्ला झाड़ लिया है। जब हमारी टीम ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने भी माना कि हमने अपनी ग्राम पंचायत से कोई नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन हमने 181 में शिकायत कर दी है।

वन अधिकारी लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए बचते नजर आए

ग्राम सरपंच ने तो 181 में अपनी शिकायत दर्ज करवाकर अपना पल्ला झाड़ लिया, लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि अचार सहिंता के चलते 181 की शिकायत क्या मायने रखेगी तो वहीं इस पूरे मामले में वन अधिकारी भी कुछ कहने से बच रहे हैं। हमारी टीम ने जब उनसे फोन पर चर्चा की तो उन्होंने फोन पर साफ कहा कि वो वन भूमि नहीं है। जिस भूमि पर कब्जा किया गया है, उसका बाकायदा हमारे पास रिकार्ड है और जो हमारे मुनारे लगे हुए हैं, उसकी सीमा से बाहर का ये पूरा मामला है, लेकिन कैमरे के सामने आने की बजाय वन अधिकारी लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए बचते नजर आए। अब देखना ये होगा कि हमारी इस खबर के बाद वन विभाग और जिला प्रशासन गरीब आदिवासियों के सामने खड़े रोजी रोटी के संकट को किस तरह दूर करता है।