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जयारोग्य अस्पताल से निकलने वाले वेस्ट वाटर का नहीं है कोई प्रबंधन, ऐसी है कमलाराजा, जयारोग्य व न्यूरोलॉजी की स्थिति

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Jan 28, 2019

धर्मेन्द्र शर्मा - ग्वालियर अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य से निकलने वाले वेस्ट वाटर का कोई प्रबंधन ही नहीं है हैरानी यह कि यहां 119 साल से वेस्ट वाटर के  ट्रीटमेंट के लिए ईटीपी प्लांट नहीं लग सका है जिले के छोटे-बड़े 1200 से ज्यादा अस्पतालों का भी वेस्ट वाटर सीधे सीवर में मिल रहा है अस्पतालों से निकलने वाले वेस्ट वाटर में मास के टुकड़े, ब्लड, चमड़ी, मवाद व अन्य संक्रमित पदार्थ होते हैं इस पानी के संपर्क में आने से गंभीर बीमारी होने का खतरा रहता है। 

80 फीसदी वेस्ट वाटर मिल रहा सीधे सीवर में

अस्पतालों से निकलने वाले गंदे पानी के संपर्क में आने पर बुखार, बुखार, हैजा, टाइफाइड, डायरिया, पायरिया, पोलियो, पीलिया, चेचक, पेट का कैंसर जैसी अनेकों गंभीर बीमारियां पनप सकती हैं शहर के 20% अस्पतालों में ईटीपी प्लांट लगा है जबकि 80 फीसदी का वेस्ट वाटर सीधे सीवर में जाता है जेएएच के पीएम हाउस में प्रतिदिन करीब 6 शवों का पोस्टमार्टम किया जाता है साल में करीब 2000 से अधिक पोस्टमार्टम किए जाते हैं पोस्टमार्टम हाउस में सड़े-गले शव का भी पीएम होता है। शव की चीरफाड़ के दौरान उसकी गंदगी (मास के टुकड़े, ब्लड, चमड़ी, अन्य सड़ा गला पदार्थ) भी फैलता है। औजारों व फर्स की धुलाई के बाद गंदा पानी सीधे सीवर में जाता है। लेकिन जेएएच अधीक्षक का साफ कहना है कि यह पानी गंदा है लेकिन अभी तक इसके कारण किसी गंभीर बीमारी की शिकायत सामने नही आई है और जल्द ही नई सौगात के रूप में ईटीपी प्लांट को जेएएच में स्थापित कराए जाने की बात कही गई।

1899 में खुला था जयारोग्य अस्पताल

तब इसकी क्षमता 400 बेड की थी लेकिन 119 साल में इसकी छमता 1200 बेड की हो चुकी है जबकि 250 बेड की क्षमता वाला कमलाराजा अस्पताल 1952 में खुला था जिसकी 66 साल में बेड क्षमता 400 हो चुकी है इतने वर्षों बाद भी वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट के लिए ईटीपी प्लांट नहीं लग सका है।

कमलाराजा, जयारोग्य व न्यूरोलॉजी की स्थिति

- एक दिन में 32 मेजर व 65 माइनर कुल-97 ऑपरेशन होते हैं

- साल में तकरीबन 35 हजार 405 ऑपरेशन होते हैं

- यदि एक ऑपरेशन में उपयोग औजार, कपड़े व ओटी की सफाई में 1 लीटर पानी खर्च होता है तब एक दिन में 97 लीटर और साल में 35 हजार 504 लीटर वेस्ट वाटर निकलता है

- वहीं कार्रवाई के लिए जिम्मेदार मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अभी तक सिर्फ रिमाइंडर और नोटिस तक सीमित है स्मार्ट होते इस शहर का ऐसा हाल अफसरों पर सवालिया निशान है।