Apr 8, 2019
सुरेश नागर- गणगौर चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां एवं विवाहित महिलायें शिवजी और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए गोर-गोर गोमती गीत गाती हैं। गणगौर आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक 18 दिनों तक चलने वाला त्यौहार है- गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है। गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।