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भिंडः युवा दे रहे गरीब बस्ती के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना समय

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Jun 4, 2019

गिरिराज बोहरे- पढ़ना-पढ़ाना हर किसी की इच्छा होती है, लेकिन यही चाह अगर मिसाल बन जाए तो क्या बात है। कुछ ऐसी ही कहानी है भिंड के कुछ युवाओं की, जो इन दिनों भिंड के बस स्टैंड स्थित गरीब बस्ती के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना समय दे रहे हैं और उनकी इस पहल से करीब 40 से 50 बच्चे जिनके पास पढ़ने का कोई साधन नहीं था, जो कभी भीख मांगते थे तो कोई कबाड़ा बीनने का काम करता था, आज इन बच्चों की जिंदगी में बदलाव आ रहा है और उन्हें पढ़ाई के लिए एक चाहत दिख रही है।

इन युवाओं की पढ़ाने की ललक और प्रतिबद्धता सबके लिए मिसाल बनती जा रही

भिंड के कुछ लोग जो समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना अपने दिल में रखते हैं। शहर के उन गरीब बच्चों के हाथों में कलम थमा रहे हैं जो हाथ कभी भीख मांगते थे, तो कभी कबाड़ा बिनते थे। भले ही इन लोगों के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए चारदीवारी और बैठाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं थी, लेकिन इनकी पढ़ाने की ललक और प्रतिबद्धता सबके लिए मिसाल बनती जा रही है। एक ओर जहां शहरों में कोचिंग और हाई-फाई ट्यूशन सेंटर खुले हुए हैं। वहीं शहर के कुछ लोगों का एक ग्रुप बस स्टैंड के पास ही एक झुग्गी बस्ती में जमीन पर बैठकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इस मुहिम को शुरू करने वाले बबलू सिंधी पैसे से तो व्यापारी हैं, लेकिन समाज में कुछ अच्छा करने की चाह में उन्होंने गरीब बच्चों को शिक्षा देने की ठानी और वे अब हर रविवार अपने समय में से 2 घंटे का समय निकालकर इन गरीब बच्चों को पढ़ाने लगे हैं।

सबसे छोटी टीचर खुद भी चौथीं कक्षा में पढ़ती हैं

करीब 8 महीने पहले शुरू की गई बबलू की इस पहल से धीरे-धीरे कई लोग जुड़े, जिन्होंने रविवार की छुट्टी में अपना समय इस नेक काम के लिए देना शुरू किया। जिसमें हर वर्ग और हर उम्र के लोग शामिल हैं। शिक्षक से लेकर गृहणी व बच्चे भी इन गरीब बच्चों को पढ़ाने आते हैं। आज करीब 40 से 50 बच्चे हर रविवार इनके पास पढ़ने के लिए इकट्ठा होते हैं। इन बच्चों की छोटी टीचर जो खुद भी चौथीं कक्षा में पढ़ती हैं, अपने पापा के साथ उन गरीब बच्चों को पढ़ाने आती है।

बच्चों की पढ़ाई के लिए लगने वाला जरूरी सामानों को ये खुद ही पैसे जोड़ कर ले लेते हैं

यह लोग व्यवस्थाओं के लिए भी किसी पर निर्भर नहीं है, चाहे बच्चों की पढ़ाई के लिए लगने वाला जरूरी सामान किताबें और बस्ती जैसी चीजें हो या यूनिफॉर्म और बैठने के लिए चटाई जैसी चीजें। ये खुद ही आपस में पैसे जोड़कर इकट्ठा कर लेते हैं। इस मुहिम से जुड़ी एक शिक्षिका बताती हैं कि वे पेशे से अध्यापिका हैं। जब उन्हें इस अभियान का पता चला तो वे भी यहां बच्चों को पढ़ाने आई और इन बच्चों की पढ़ाई के प्रति ललक देखकर अपने आप को न रोक सकी। अब हर रविवार को यहां 2 घंटे बच्चों को पढ़ाने के लिए आती हैं। इन बच्चों में पहले से कहीं ज्यादा बदलाव भी देख रही हैं।

हमारे देश में या फिर कहें कि पूरी दुनिया में लोग अलग-अलग मुद्दों और फायदे देखते हुए मुहिम चलाते हैं। उन्हें आगे बढ़ाते हैं और निजी स्तर पर प्रसिद्धि कमाते हैं, लेकिन इन निजी प्रसिद्धियों के बीच बबलू, साक्षी, रचना जैसे लोग भी हैं जो इस समाज को एक बेहतर भविष्य देने की कोशिश कर रहे हैं।