Feb 7, 2018
रतलाम। हम बात कर रहे है रतलाम की। इस शहर का कोई भी व्यक्ति चाहे वह गरीब हो मध्यम वर्गीय हो या अमीर हो सबकी एक ही अंतिम इच्छा होती है कि उसे मरने के बाद 2 गज जमीन उपलब्ध हो जाए चाहे वह उसके दाह संस्कार के लिए चाहे उसे दफनाने के लिए। इसके लिए व्यक्ति सारा जीवन अपने घर मकान को बनाने में लगा देता है और मरने के बाद यदि उसे 2 गज जमीन भी उपलब्ध ना हो तो क्या कहेंगे।
कुछ ऐसा ही मामला अक्सर रतलाम में उस समय देखने में आता है जब कोई बीमार मरीज, पुलिस या नगर निगम को मिलता है या उसकी मौत हो जाती है चाहे वह जिला चिकित्सालय में हो चाहे अन्य जगह, पुलिस और नगर निगम का प्रयास होता है कि मरने वाले व्यक्ति को उसके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार मिले और वह भी उसके परिजनों के साथ।
परंतु कई बार रतलाम में लावारिस मरने वाले के शवों की दुर्गति देखने में आती है ऐसा ही कुछ नजारा हाल ही में देखने को आया जब स्टेडियम मार्केट के पास पुलिस को एक व्यक्ति लावारिस पड़ा हुआ मिला और उसे जिला चिकित्सालय भेजा गया। उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई और अब बारी थी उसके अंतिम संस्कार की। परिजनों के इंतजार में जो 5 दिन तक जिला चिकित्सालय के मरचुरी में पड़ा रहा और जब पुलिस ने उसे दफनाने के लिए नाथ संप्रदाय के शमशान भेजा तो वहां उसे विरोध का सामना करना पड़ा।इसके पश्चात शव को पुनः रतलाम के जिला चिकित्सालय लाया गया और मरचुरी में रखा गया।
इस प्रकार के घटनाक्रम अक्सर सामने आते हैं जब पुलिस को लावारिस शव को दफनाने के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है और आखिर में शवों को सुनसान वीरान इलाकों में दफना दिया जाता है इस संदर्भ में जिला चिकित्सालय के मरचुरी के स्वीपर का कहना है कि जब वह लोग शव को लेकर कब्रिस्तान या शमशान में दफनाने जाते हैं तो उन्हें बैरंग लौटा दिया जाता है और धर्म संप्रदाय के नाम पर इंसानो कि दुर्गति होती रहती है।
इस लावारिस शव के साथ भी ऐसा हुआ जब उसे दफनाने के लिए कोई जगह नहीं मिली तो इस शव को एक जेसीबी की मशीन के द्वारा गड्ढा खोदकर तीन व्यक्तियों के द्वारा दफना दिया गया और यह जगह थी सालाखेड़ी के पास हड्डी कारखाने के नजदीक एक लावारिस नजूल की भूमि। इस संदर्भ में पुलिस कप्तान अमित सिंह का कहना है कि कानूनी रूप से कोई भी व्यक्ति जिसकी लावारिस मृत्यु हो जाती है उसे दफनाना पड़ता है चाहे वह किसी भी संप्रदाय का हो। पुलिस कप्तान का यह भी कहना था कि इस मृतक के परिजनों को ढूंढने का पूरा प्रयास किया गया और वह नहीं मिले तो इस को दफनाने के लिए नाथ संप्रदाय के कब्रिस्तान भेजा था जहां विरोध के पश्चात तथा परंपराओं के नाम पर शव को वापस लौटा दिया गया।
पुलिस कप्तान का कहना था कि लावारिस शवों के दाह संस्कार के लिए पुलिस को साल भर के लिए 12000 के करीब राशि मिलती है और नगर निगम के पास भी इसका फंड रहता है इस संदर्भ में जब महापौर से चर्चा की गई तो उन्होंने पूरे मामले से अनभिज्ञता दर्शा दी अब प्रश्न यह उठता है कि करोड़ों रुपए खर्च कर गरीबों के लिए मकान बनाए जा रहे हैं और दावा किया जा रहा है कि आने वाले सालों में कोई भी गरीब बिना छत के नहीं रहेगा तो ऐसे में क्या रतलाम नगर निगम और जिला प्रशासन इस प्रकार के शवों के लिए उनके सम्मान पूर्वक दाह संस्कार के लिए 2 गज जमीन भी उपलब्ध नहीं करा सकता।