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पांच अस्पतालों में अत्याधुनिक बर्न यूनिट को केंद्र ने दी हरी झंडी

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Nov 7, 2016

भोपाल। मप्र के पांच मेडिकल कॉलेजों से जुडे पांच अस्पतालों में अत्याधुनिक बर्न यूनिट बनाए जाने के प्रस्ताव को केंद्र ने हरी झंडी दे दी। जिन शहरों के अस्पतालों में यूनिट बनने हैं इनमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा शामिल है। जानकारी के मुताबिक करीब सालभर के भीतर यूनिट तैयार हो जाएंगी। एक यूनिट बनाने पर करीब 9 करोड़ रुपए खर्च आएगा। इसमें 60 फीसदी राशि केन्द्र व बाकी राज्य सरकार देगी, 4 नवंबर को दिल्ली में हुई एक बैठक में यह निर्णय लिया गया है। इसके बनने का सबसे ज्यादा फायदा यहां भर्ती होने वाले मरीजों को होगा। इनमें ऐसी सुविधाएं रहेंगी, जिससे उन्हें संक्रमण का खतरा बिल्कुल कम हो जाएगा। जले हुए मरीजों में घाव के जरिए सबसे ज्यादा संक्रमण होता है। अभी इन अस्पतालों में 60 फीसदी से ज्यादा जले हुए मरीजों को बचा पाना बहुत मुश्किल हो रहा है। राजधानी के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) से जुड़े हमीदिया अस्पताल की बात करें तो यहां बर्न वार्ड में हर साल करीब 35 मरीजों की मौत हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह संक्रमण है। दूसरे मेडिकल कॉलेजों व जिला अस्पतालों का भी यही हाल है। 

यूनिट में होगी ये सुविधा

स्किन बैंक: हर बर्न यूनिट में स्किन बैंक बनाया जाएगा। अभी किसी मेडिकल कॉलेज में यह सुविधा नहीं है। जले हुए मरीजों की रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के लिए बैंक से स्किन मिल सकेगी।

मॉड्यूलर ओटी: ऑपरेशन थियेटर भी इसी यूनिट में रहेगा। यह अन्य ऑपरेशन थियेटरों से अलग होगा। पूरी तरह से एसी होगा, जिससे संक्रमण का डर न हो।

आईसीयू: गंभीर मरीजों को पहले यहां भर्ती किया जाएगा। हालत में सुधार होने पर वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा।

एयर फिल्टर वार्ड: आईसीयू व वार्डों में अत्याधुनिक एयर फिल्टर लगाए जाएंगे, ताकि धूल न पहुंचे। वायरस और बैक्टीरिया खत्म करने के लिए भी फिल्टर लगाए जाएंगे।

फुल टाइम स्टाफ: बर्न यूनिट के लिए अलग से डॉक्टर भर्ती किए जाएंगे। ऐसे में इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को भी तुरंत इलाज मिल सकेगा।

अभी भी हैं कई समस्या

- बर्न यूनिट के नाम पर सिर्फ बर्न वार्ड है। बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी के विशेषज्ञ नहीं हैं।

- एसी खराब रहते हैं, इससे गर्मी में वार्ड का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि यह 29-30 डिग्री होना चाहिए।

- कूलर व पंखे चलते हैं। इनसे वार्ड पहुंचने वाली धूल से संक्रमण बढ़ जाता है।

- ज्यादा मरीजों की विशेष केयर नहीं हो पाती, क्योंकि आईसीयू नहीं है।

- बाहरी लोगों के आने-जाने में कोई पाबंदी नहीं है।

- दवाएं पर्याप्त नहीं हैं। मरीजों को खुद दवाएं खरीदना पड़ रही हैं।

- बचाव के काम आने वाले अहम उपकरण तक नहीं हैं।