Oct 2, 2025
महाकाल की नगरी में रावण की अनोखी पूजा: चिकली गांव जहां दहन नहीं, मन्नतें पूरी होती हैं
मयंक गुर्जर उज्जैन: भगवान महाकाल की पावन नगरी, जहां दशहरे पर रावण का दहन आम होता है, वहां से मात्र 20 किलोमीटर दूर चिकली गांव एक अनोखी परंपरा निभाता है। यहां लंका नरेश रावण को महाकाल का परम भक्त माना जाता है। दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। ग्रामवासी बताते हैं कि पूजा न करने पर गांव में आगजनी जैसी विपत्तियां आती हैं। यह मंदिर मन्नतों का केंद्र है, जहां चैत्र नवरात्रि और दशहरे पर दो दिवसीय मेला लगता है।
मंदिर का इतिहास: आगजनी की याद से बनी परंपरा
चिकली गांव, बड़नगर रोड पर स्थित, उज्जैन जिले के तराना तहसील में बसा है। यहां का रावण मंदिर सदियों पुरानी कथा से जुड़ा है। ग्रामवासियों के अनुसार, एक बार रावण की पूजा-अर्चना न करने पर पूरे गांव में आग लग गई थी। उसके बाद पूर्वजों ने रावण को शिवभक्त के रूप में पूजना शुरू किया। मंदिर में 10 फीट ऊंची सीमेंट-कंक्रीट की रावण प्रतिमा स्थापित है। मंगलवार को दशहरे पर करीब 20 आसपास के गांवों से भक्त उमड़ आए। सभी ने रावण की आरती उतारी और मन्नतें मांगीं।
दशहरे का अनोखा उत्सव: दहन की जगह राम-सीता की लीला
चिकली में रावण दहन का चलन नहीं है। इसके बजाय श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता और हनुमानजी की सवारी यात्रा निकाली जाती है। सीता का वनवास होता है, फिर हनुमानजी द्वारा लंका दहन का प्रतीकात्मक दृश्य दिखाया जाता है। अंत में रामजी द्वारा रावण का वध नाटकीय रूप से प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन रावण को सम्मान देते हुए पूजा की जाती है। शाम को मेला लगता है, जहां भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। हालांकि, गांव के कुछ लोग अलग से रावण दहन भी करते हैं, लेकिन मुख्य परंपरा पूजा की है।
मन्नतों का चमत्कार: भक्तों की आस्था का केंद्र
यह मंदिर रावण को ब्राह्मण और विद्वान के रूप में पूजता है। भक्त यहां मन्नतें मांगते हैं, जो कथित रूप से पूरी होती हैं। दशहरे पर हवन और व्रत रखे जाते हैं। उज्जैन की ब्राह्मण समुदाय की तरह, चिकली के लोग रावण को शिव का भक्त मानते हैं। यह परंपरा सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है, जहां बुराई पर अच्छाई की जीत पूजा से मनाई जाती है।