Aug 24, 2022
नैनीताल हाई कोर्ट ने राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा, प्रवर सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने पर रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आयोग की मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति देने को कहा है। कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए सरकार कानूनी रास्ते खोज रही है।
पूरा मामला
दरअसल, उच्च विभागों में 200 से अधिक पदों के लिए शुरुआती परीक्षाओं के रिजल्ट 26 मई 2022 को आए। इसमें अनारक्षित श्रेणी की दो लिस्ट निकाली गई। उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थी का कट ऑफ 79 था। याचिकाकर्ता ने कहा कि उनके अंक 79 से अधिक हैं मगर उन्हें अयोग्य करार दिया गया। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के शासनादेश के अनुसार, उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है। वहीं सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य की महिलाओं को आरक्षण दिया जाना संविधान सम्मत है।
कोर्ट ने दिए निर्देश
बुधवार को चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आर एस कुल्बे की बेंच में हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत अन्य शिकायतकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें न्यायाधीश ने उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों को मिलने वाली 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगा दी है। साथ ही शिकायतकर्ताओं को आयोग की अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अंतरिम अनुमति भी मिली।








