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एक प्राचीन पर्व छठ पूजा का हमारे जीवन में महत्व, 4 दिनों तक होती है सूर्य की उपासना

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Nov 1, 2019

हमारे भारत में छठ पूजा को एक प्राचीन पर्व माना जाता है। यह दीपावली के ठीक छठवें दिन मनाया जाता है। छठ पूजा को सूर्य छठ या डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व  बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के भिन्न-भिन्न, बड़े शहरों में मनाया जाता है। जिसमें लोग उगते हुए सूर्य को नमस्कार करते हैं। छठ पूजा एक ऐसा अनोखा त्यौहार  है, जिसका प्रारम्भ सूर्य अस्त से किया जाता है। ‘छठ' शब्द ‘षष्ठी' से बना है, जिसका अर्थ ‘छह' है, इसी कारण पर्व चंद्रमा के आरोही चरण के छठवें दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है। कार्तिक माह की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाने वाला यह पर्व पूरे 4 दिनों का होता है। इसकी मुख्य पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के छठवें  दिन करी जाती है। इस त्योहार का उद्देश्य सूर्य से अपनेपन और निकटता को महसूस करना है। सूर्य को जल अर्पित करने का अर्थ है कि हम संपूर्ण हृदय से आपके (सूर्य के) आभारी हैं और यह भावना प्रेम से उत्पन्न हुई है। इसमें दूध से भी अर्घ्य देते हैं। दूध पवित्रता का प्रतीक है। दूध को पानी के साथ अर्पित किया जाना इस बात को दर्शाता है कि हमारा मन और हृदय दोनों पवित्र बने रहें। सूर्य इस ग्रह पर सभी आहार का स्रोत है। यह सूर्य ही है, जिसके कारण ऋतुएं और वर्षा आती है।

सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पूरा परिवार देता है सूर्य को अर्घ्य

सूर्य इस ग्रह पर जीवन का निर्वाहक हैं। सूर्य के प्रति कृतज्ञता की गहन भावना के साथ प्रसाद बनाया जाता है। सब्जियों, मिठाइयों और विभिन्न खाद्य पदार्थों को सूर्य को यह कहते हुए अर्पित किया जाता है कि ‘यह सब आपका है, यहां मेरा कुछ भी नहीं है।' सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पूरा परिवार सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जल में उतरता है। जल हथेलियों में रखा जाता है और सूरज को देखते हुए, जल को धीरे-धीरे उसे अर्पित किया जाता है। सुबह और शाम के समय सूर्य को देखने का महत्व पूरे विश्व में बताया जाता है और विज्ञान यह मानता है कि यह शरीर में विटामिन डी उत्पन्न करने के लिए सूर्य आवश्यक है। प्रातः और सायं के समय सूर्य का अवलोकन करने से शरीर में सूर्य की ऊर्जा मिलती है। यह बुद्धि को तीव्र और सबल बनता है। वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो बिना खाना खाए भी अपनी पूरी जिंदगी सूर्य की ऊर्जा पर बने रहते हैं।

जीवनदायी सूर्य देव को आभार प्रकट करने का महोत्सव है छठ व्रत

नित्य सूर्य को अर्घ्य देने से भी शरीर में ऊर्जा का मिलती है। ऐसा माना जाता है कि जीवन निर्वाहक सूर्य को सच्चे मन से आभार की अभिव्यक्ति करना ही छठ पूजा है। यह उपवास दर्शाता है कि हम अपने अस्तित्व के लिए सूर्य के कर्ज़दार हैं। जाति, पंथ और धन की सीमाओं को पार करते हुए, लोग इस सुंदर पर्व को मनाने के लिए एक साथ आते हैं। यह बात हम सब जानते है कि सूर्य को जगत की आत्मा कहा जाता है क्योंकि वे पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। उनके आलोक को अपनी चेतना में धारण करने से जीवन प्रकाशित हो उठता है। छठ व्रत इन्हीं जीवनदायी सूर्य देव को आभार प्रकट करने का महोत्सव माना जाता है, जिसमें पूरा समाज बिना किसी छुआ-छूत के साथ सामूहिक रूप से उनकी आराधना करता है। छठ में हम जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं । जल या आप: का एक अर्थ प्रेम भी है। जल प्रेम का प्रतीक भी है। ‘आप्त’ एक शब्द है, जो ‘आप:’ से बना है। आप्त का अर्थ है, ‘जो बहुत प्रिय हो।’