Jan 4, 2017
बस्तर। छत्तीसगढ़ के नक्सलवाद के क्षेत्र बस्तर में अब डिजिटल की ओर बढ़ रहा है। कभी बस्तर के आदिवासियों को बाहरी दुनिया के बारे में जानने और समझने के लिये उसे दो-चार होना पड़ता था, लेकिन अब वह दौर गुजर गया है. आज का बस्तरिया अपने रहन-सहन में बदलाव करते हुए समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। सबसे खास बात ये है कि बस्तर की आदिवासी महिलाएं, युवतियां और हालातों से मजबूर हो चुके बच्चे देश दुनिया की जानकारी से महरूम रहते थे. वही बच्चे, युवतियां और महिलाएं आत्मनिभर्र बनने के गुर सीख रहे हैं। आज वो आत्म निर्भर बनकर देश-दुनिया की जानकारी के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के सपने को साकार कर रहे हैं। कल तक बात करने से भी घबराने वाली युवतियां और महिलाएं अब बस्तर के बारें में बेबाक होकर हर सवालों का जवाब दे रही हैं।
आत्मनिर्भर हो रही हैं महिलाएं
पिछले तीन दशकों से नक्सलवाद ने बस्तर को ऐसा जकड़ा कि बस्तर का हर वर्ग देश दुनिया से पूरी तरह से अछूता रहा और गोलियों और बारुद के धमाकों में अपनी जिदंगी जीने के लिये मजबूर हो गया. समय बदला और स्थिति बदली. आज वही आदिवासी ग्रामीण लोग बेहतर जिदंगी जीने और समाज के साथ मिलकर बढ़ते देश के साथ आगे बढ़ रहे हैं। कल तक जिस इलाकों के लोगों का रहन-सहन विदेशों के लिए एक तस्वीर हुआ करती थी, आज उसी बस्तर के मायने समय के साथ बदल रहे हैं. महिलाएं अपने आपको आत्म निर्भर बनाने के लिये मेहनत कर रही हैं. बस्तर ब्लॉक के बालेगा में संचालित होने वाले राजीव गांधी सेवा केन्द्र में लगभग 100 महिलाएं प्रतिदिन अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षण ले रही हैं.
व्यकित्व विकास के लिए प्रशिक्षण ले रही ये चिंता, गौतम, शांति और शकुंतला वे महिलाए हैं जो कभी बात तक करने से पहेज करती थी वो आज बेबाक और आत्मविश्वास के साथ लोगों के सवालों का जवाब देती हैं और बात करती हैं। महिलाओं को प्रशिक्षण दे रहे शिक्षक हर्पिता ठाकुर व सुदीप ठाकुर का मानना है कि बस्तर की जो छवि देश दुनिया में वह अब बदल रही है. नक्सलियों का गढ़ अब धीरे-धीरे डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है। राजीव गांधी सेवा केन्द्र में अब जो दूसरी तस्वीर है, वह सबसे अलग है. किसी वजह से पढ़ाई छोड़ चुके छात्रों के लिए यह सेवा केन्द्र एक मिसाल बना हुआ है. सैकड़ों की संख्या में स्कूल छोड़ चुके बच्चों को अलग-अलग विधाओं का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. साथ ही उनके परिजनो को भी सेवा केन्द्र में लाकर आत्मनिर्भर बनने के गुर सिखाए जा रहे हैं।
आदिवासी महिलाओं के द्वारा तैयार पेंटिंग्स
पीयूष और आकाश को कम्प्यूटर का ज्ञान देकर उन्हें जानकारी दी जा रही है. कभी कम्प्यूटर को दूर से देखने वाला आदिवासी बच्चा आज कम्प्यूटर से खेल रहा है और अपने नन्हें-नन्हें हांथों से पेंटिग व टाईप करना सीख रहा है। प्रशिक्षक अनामिका व जनपद सीईओ घनश्याम जांगड़े भी मान रहे हैं कि आदिवासी बच्चे इस ज्ञान को पाकर बेहद ही खुश हैं। इस सार्थक सामाजिक प्रयास से अब बस्तर बेबस और लाचार नहीं है. बल्कि दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ रहा है. अब वह दिन दूर नहीं जब बस्तर की एक अलग पहचान देश और दुनिया के देखने को मिलेगी।