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योजना के नाम पर 83 लाख रूपये का बंदरबाट, सवालों के घेरे में आई योजना

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May 12, 2019

पुरूषोत्तम पात्रा : गरियाबंद जिला पंचायत की कार्यशैली हमेशा की तरह एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गयी है, दो साल पहले तत्कालीन जिला पंचायत पंचायत सीईओ द्वारा एप्पल बेर उगाने के नाम पर 83 लाख रुपये की बंदरबाट के कारण सवालों के घेरे में आय़ी थी और अब वर्तमान सीईओ द्वारा मामले की जॉच में दिलचस्पी नहीं लेने के कारण एक बार फिर सवालों के घेरे में है।

83 लाख रुपये खर्च 
वैसे तो किसी भी ग्राम पंचायत को अधिकतम 20 लाख रुपये तक के सरकारी कार्यों में एजेंसी बनाया जा सकता है, मगर गरियाबंद में दो साल पहले तत्कालिन जिला पंचायत सीईओ ने गॉव की 48 एकड़ जमीन पर एक करोड तैंतीस लाख रुपये की लागत से 12 हजार एप्पल बेर उगाने के लिए देवभोग की बिरीघाट पंचायत को एजेंसी बना दिया। इसमें 83 लाख रुपये खर्च किये गये। जिसमें 36 लाख रुपये की गोबर खाद और मिट्टी का बिल भी शामिल है। ताज्जुब की बात ये है कि पंचायत प्रतिनिधियों को ऐजंसी होने के बाद भी खर्च की कोई जानकारी ही नही है, तमाम राशि तत्कालिन जिला पंचायत सीईओ द्वारा नियमों को तोड मरोड कर खुद ही जारी कर दी, हालांकि इस मामले में दूसरा ताज्जुब ये भी है कि अब वहां एक भी पौधा जिंदा नही है।

जिला पंचायत सीईओ का तबादला 
मामले का खुलासा होने के बाद बड़े स्तर पर शिकायतें हुई, तत्कालिन जिला पंचायत सीईओ का तबादला हो गया और वर्तमान सीईओ छह माह से जांच जल्द पूरी करने का रटा रटाया जवाब दे रहे हैं, वहीं छोटे अधिकारी इस मामले में खुद को जांच करने में सक्षम नहीं होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे है।

पैसे की बंदरबाट करने के लिए बनाई योजना
मामले की गहराई से जांच करने पर पता चला है कि एप्पल बेर उगाने की ये पूरी योजना सिर्फ पैसे की बंदरबाट करने के लिए ही बनायी गयी थी, यदि योजना को सफल बनाने के लिए बनाया गया होता तो एंजेसी ग्राम पंचायत को नहीं बनाया गया होता जो इतने बड़े काम के लिए अपात्र तो थी ही साथ ही उसे इस तरह के काम का कोई अनुभव भी नहीं था, बल्कि एजेंसी ऐसे कामों के लिए सरकार द्वारा विशेष तौर पर स्थापित किये गये उद्यानिकी विभाग को बनाया गया होता, अब देखने वाली होगी कि मामले की जॉच कबतक और कैसे होती है।