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एक बार फिर गैस के दामों में बढ़ोत्तरी, बिगड़ा घर का बजट

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Oct 2, 2018

सुरेन्द्र जैन - पेट्रोल एवं डीजल की तरह गैस के दाम भी आसमान पर हैं। माह की पहली तारीख आते ही एक बार फिर गैस के दाम में बढोत्तरी हुई है। स्थानीय गैस एजेंसियों के मुताबिक बीते माह घरेलू 14.2 किलो ग्राम के गैस सिलेंडर की रिफिल राशि 880 रुपये थी जो इस माह अक्टूबर की एक तारीख को बढ़कर 940 रुपये हो गई है। यानी इस माह घरेलू गैस में 60 रुपये की बढोत्तरी हुई है जिससे गृहणियों का घरेलू बजट एक बार फिर गड़बड़ा गया है।

व्यवसायिक सिलेंडर पर 88 रूपए की बढ़ोत्तरी

दूसरी तरफ 19 किलो ग्राम के व्यवसायिक सिलेंडर की रिफिल भी इस माह फिर बढ़ गई है पिछले माह जो 19 किलो ग्राम का व्यवसायिक सिलेंडर 1547 रुपये में मिलता था अब इस माह अक्टूबर में वह 88 रुपये बढ़कर 1635 रुपये में मिलेगा। व्यवसायिक गैस सिलेंडरों की बढ़ती महंगाई का असर भले हो औधोगिक इकाइयों पर अधिक न हो लेकिन छोटी-छोटी नाश्ता चाय-पानी की होटलों पर इसका गहरा प्रभाव देखने को मिल रहा है।

होटलों में अब लकड़ी कोयला

दरअसल व्यवसायिक गैस के दामों में बेतहाशा बृद्धि होने के बाद छोटे-छोटे होटल चाय-नाश्ता के दुकानदारों पर इसका सीधा असर हुआ है। और अब होटलों व नाश्ता की छोटी गुमटी ठेला वालों ने कोयला सिगड़ी का सहारा लेना शुरू कर दिया है। वहीं होटलों में अब लकड़ी गुटका जलाकर चूल्हा भट्टी पर नाश्ता बनाया जाने  लगा है। स्थानीय होटल संचालको का कहना है कि हम अपने परिवार की रोजी रोटी चलाने दिनभर मेहनत करते है लेकिन इतनी महंगी गैस जलाएंगे तो उल्टा घाटा  ही होगा। वैसे भी महंगाई बढ़ने से होटलें भी पूर्व की अपेक्षा मात्र 25 प्रतिशत ग्राहकी रह गई है इसलिए नौकरों कि संख्या भी घटाकर इक्का-दुक्का नौकर ही रखे है फिर भी बमुश्किल होटल से घर खर्च चल पा रहा है।

उज्ज्वला नही फेक्ट्रियों की काली  डस्ट के लड्डू जला रहे गरीब

बता दें कि भले ही सरकार धुंआ मुक्त गांव बनाने के लाख दावे क्यों न करे लेकिन बढ़ती महंगाई और गैस के आसमान छूटे भाव के चलते गरीब मजदूर वर्ग को उज्ज्वला की गैस रिफिल लेने से अच्छा फोकट का ईंधन है। फोकट का ईंधन ग्रामीण गरीब मजदूर वर्ग फेक्ट्रियो की काली राखड़ से बनाते है। इसे बनाने के लिए मजदूरी से काम पूरा कर जब ग्रामीण घर वापस आते हैं तो साथ मे फेक्ट्री की काली राखड़ लेकर आते है फिर उसमें पीली मिट्टी मिलाकर पानी से सानते हैं और अपने घर के आंगन में उसके लड्डू  बनाकर सूखने रख देते है सूखने के बाद उन लड्डुओं को सिगड़ी में जलाकर भोजन पकाते है।

इस कार्य मे थोड़ी मेहनत जरूर लगती है लेकिन गैस की महंगाई से गरीब मजदूर वर्ग मुक्त रहता है। औधोगिक क्षेत्र सिलतरा, सांकरा, सोंडरा, धनेली, चरोदा, टाडा आदि गांव में इसी तरह ग्रामीण महंगी ईंधन से मुक्ति पाते है।