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मुंगेलीः ‘साहब मैं जिंदा हूं’ असल जिंदगी की सच्चाई, जिन्दा होने का देना पड़ रहा सुबूत

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Jan 6, 2020

रोहित कश्यप - ‘साहब मैं जिंदा हूं’ यह चंद लाइन किसी फिल्म का टाइटल या किसी काल्पनिक दुनिया की कहानी का शीर्षक नहीं है बल्कि वास्तविक जगत के प्रभात नामक व्यक्ति की असल जिंदगी की सच्चाई है। जो कि शारीरिक रूप से ना सिर्फ लाचार है बल्कि अब मानसिक रूप से बेहद परेशान भी रहता है। पिछले 2 साल से खुद को जिंदा साबित करने के लिए प्रभात दफ्तरों का चक्कर काट-काटकर थक चुका है, क्योंकि सिस्टम के रिकॉर्ड में प्रभात को मृत घोषित कर दिया गया है।

बता दें कि प्रभात ताम्रकार मुंगेली नगर के बड़ा बाजार का रहने वाला है। जिसने 2005 से 2017 तक शहर के ही एक एक निजी स्कूल जेसीज पब्लिक स्कूल में बतौर क्लर्क के पद पर सेवाएं दी। 2017 में प्रभात की तबीयत खराब हो जाने के कारण वह कुछ दिनों तक स्कूल में नौकरी करने नहीं जा सका। तबीयत ठीक हो जाने पर जब प्रभात स्कूल पहुंचा, तब उसे स्कूल प्रबंधन की ओर से बताया गया कि उसके स्थान पर किसी और की नियुक्ति कर ली गई है। इसके बाद प्रभात ने स्कूल प्रबंधन से ईपीएफ पेंशन की मांग की।

स्कूल प्रबंधन ने इसे एक मामूली ऑनलाइन त्रुटि बताया, मगर सुधार अब तक नहीं

ईपीएफ या भविष्य निधि की राशि प्राप्त करने के लिए काफी दिनों तक प्रबंधन की ओर से इस संबंध में कोई भी पहल नहीं की गई। प्रभात के शारीरिक रूप से असक्षम होने के कारण उनके पुत्र की ओर से रायपुर स्थित कार्यालय में इस संबंध में जानकारी ली गई तो पता चला कि स्कूल प्रबंधन की ओर से उसके मृत हो जाने की जानकारी दी गई है। यह जानकर परिजन और प्रभात के होश उड़ गए। इसके बाद पिछले 2 सालों से खुद को जिंदा साबित करने के लिए प्रमाण और भविष्य निधि राशि की मांग करते प्रभात दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। इसके बाद भी आज तक न्याय नहीं मिला। एक बार फ़िर प्रभात की ओर से उनके पुत्र प्रतीक ने जिला कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे से शिकायत करते हुए न्याय की गुहार लगाई है। मीडिया से बातचीत में कलेक्टर ने बताया कि इस पूरे मामले की जांच का जिम्मा शिक्षा विभाग को सौंपा गया है। जांच प्रतिवेदन में जो तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर ही आगे कार्रवाई की जाएगी। इधर स्कूल प्रबंधन से इस पूरे प्रकरण पर जब हमने बात की तो प्रबंधन सिर्फ इसे एक ऑनलाइन त्रुटि करार दे रहे हैं,  लेकिन सवाल यह है कि जब एक मामूली ऑनलाइन त्रुटि ही थी तो पिछले 2 सालों से स्कूल प्रबंधन ने त्रुटि को क्यों नहीं सुधारा। क्यों 2 साल से इसे रोक कर बैठा है स्कूल प्रबंधन, यह सोचने वाली बात है।