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आत्मसमर्पण कर चुके नक्सली बद्हाली की जिंदगी जीने को मजबूर, सरकार ने बंद की हर महिने मिलने वाली राशी

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Jan 22, 2019

आशुतोष तिवारी - टॉप मोस्ट और खूंखार नक्सली लीडर कोसा, भूपति, सोनू और ना जाने कितने बड़े लीडरों के साथ काम कर चुके आत्मसमर्पित नक्सली नरेश और शबनम जो आज बेबस और लाचार होकर प्रदेश की सरकार से अपनी जीविका के लिए गुहार लगा रहे हैं ये वो नक्सली हैं जो कभी बड़े-बड़े दलम के राइट हैंड हुआ करते थे सरकार ने पुनर्वास निति के तहत मुख्यधारा में लौटने पर जिम्मेदारी उठाने का भरोसा दिया जिसे मानकर इन्होंने लाल आतंक से तौबा करते हुए हथियार डाल दिए।

सरकार ने छोड़ा साथ

लेकिन अफसोस अपना मतलब निकल जाने के बाद सिस्टम ने इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया, आत्मसमर्पीत महिला नक्सली शबनम बताती हैं कि सरेंडर करने के बाद सरकार की ओर से उन्हें प्रोत्साहन राशि के तौर पर दस हजार और बंदूक के बदले में तीस हजार रुपये दिए गए थे सरेंडर के वक्त उनपर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित था जो अभी तक उन्हें नहीं मिला है शबनम का कहना है कि पहले सरकार की ओर से उन्हें हर महीने 12 हजार रुपये की राशि दी जाती थी लेकिन मई 2018 से इसे बंद कर दिया गया है ऐसे अब उनके पास जीविका चलाने का संकट खड़ा हो गया है।

जीवन यापन करने के लिए कर रहे मजदूरी

वहीं दूसरी ओर सरेंडर करने वाले नक्सली नरेश का कहना है कि उन्होंने साल 2016 में तात्कालीन बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी के सामने सरेंडर किया था उन्होंने बताया कि सरेंडर करने के बाद उनकी आत्मसमर्पित नक्सली से शादी भी करा दी गई थी जिसके बाद पुलिस ने शुरुआत के कुछ दिन तो उन्हें डीआरजी टीम में रखा और इस दौरान वो कई नक्सल विरोधी ऑपरेशन में भी शामिल हुए लेकिन अचानक ही उन्हें यह कहकर निकाल दिया गया कि अब उनके लायक कोई काम नहीं है उनका कहना है कि अब जीवन यापन करने और अपने परिवार को पालने के लिए उन्हें मजदूरी करनी पड़ रही है क्योकि वो अब अपने गांव भी वापस नहीं जा सकते क्योंकि ऐसा करने पर उनकी जान को खतरा हो सकता है।