Mar 18, 2018
भले ही छत्तीसगढ़ के इलाकों में माओवादियों के खौफ का साया मडंराता हो पर मगरलोड इलाके के बीहड़ में साल भर माता की भक्ति का मानों सैलाब उमड़ पड़ता है।मां निरई माता के चमत्कार का ही प्रभाव है, कि यहां दूर दूर से लोग अपनी मुरादें पूरी करने खिचे चले आते हैं।माना जाता है कि नवरात्र मे यहां ज्योत खुद ब खुद जल उठती है।
साल में सिर्फ एक बार खुलता है माता का दरबार...
खास बात ये है कि माता का दरबार साल में एक बार सिर्फ चैत्र नवरात्र में ही खोला जाता है। ये मंदिर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर औऱ धमतरी से करीब 70 किमी दूर मोहेरा पंचायत के घने जंगलों के बीच मौजूद है। मां निरई माता के दरबार में चहुंओर माता के जयकारे गूंजते रहते हैं। जब भक्त मगरलोड इलाके के इस बीहड में माता के दर्शन करने आते हैं, तो उनके रास्ते न तो फासले की मुश्किलें रोक पाती हैं और ना ही नक्सलियों का खौफ।
आज भी महिलाओं के जाने पर है मनाही...
बताया जाता है कि सैकड़ों साल पहले बीहड़ पहाड़ में मां निरई माता मंदिर की स्थापना की गई, और वहीं के पुजारी बैगा की सेवा से प्रसन्न होकर माता अपने भक्त बैगा को ममता का दुलार देती थीं, उसे खाना भी खिलाती थीं, लेकिन बैगा की पत्नी के शक पर माता क्रोधित हो उठीं, जिसके बाद किसी भी महिला को नहीं देखने की अपनी इच्छा जाहिर कि, यही वजह है कि इस मंदिर में महिलाओं के आनेजाने में मनाही है।
चैत्र नवरात्र के पहले रविवार को है विशेष मान्यता...
यहां चैत्र नवरात्र के पहले रविवार को ही माता के दर्शन करने का रिवाज है। वहीं मां निरई माता का यह दरबार श्रृद्धालुओं के आस्था का केन्द्र बन गया है। भक्तो की मानें तो चैत्र नवरात्र में यहां खुदबखुद ज्योत जल उठती है, इसके अलावा और कई चमत्कार दिखाई पडते हैं, और इस खास मौके पर हजारों की तादाद में बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। मान्यता है कि बकरों की बलि देने से माता प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।