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उस हीरोइन को छू लेने की तमन्ना में ना जाने कितने मर गये: पुण्यतिथि विशेष

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Mar 9, 2018

भारतीय सिनेमा जगत की पहली ड्रीम गर्ल देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को आंध्रप्रदेश के वाल्टेयर नगर में हुआ था। उनके पिता कर्नल एम.एन.चौधरी उंचे बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते थे जिन्हें बाद में भारत के प्रथम सर्जन जनरल बनने का गौरव प्राप्त हुआ। देविका पहली ऐसी सफल हीरोइन थी जिन्होंने लोगों को अपना दीवाना बना दिया था।

देविका की शिक्षा
नौ वर्ष की उम्र में देविका रानी शिक्षा ग्रहण करने के लिये इंग्लैंड चली गयी। पढ़ाई पूरी करने के बाद देविका रानी ने निश्चय किया कि वह फिल्मों में अभिनय करेगी लेकिन परिवार वाले इस बात के सख्त खिलाफ थे क्योंकि उन दिनों संभ्रान्त परिवार की लड़कियों को फिल्मों में काम नहीं करने दिया जाता था। इंग्लैंड में कुछ वर्ष रहकर देविका रानी ने रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट में अभिनय की विधिवत पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने वास्तुकला में डिप्लोमा भी हासिल किया। इस बीच उनकी मुलाकात बुस्र बुल्फ नामक फिल्म निर्माता से हुयी जो उनकी वास्तुकला की योग्यता से काफी प्रभावित हुये और उन्होंने देविका रानी को अपनी कंपनी में बतौर डिजाइनर नियुक्त कर लिया।

इस बीच उनकी मुलाकात सुप्रसिद्ध निर्माता हिमांशु राय से हुयी। हिमांशु राय मैथ्यू अर्नाल्ड की कविता लाइट ऑफ एशिया के आधार पर इसी नाम से एक फिल्म बनाकर अपनी पहचान बना चुके थे। हिमांशु राय देविका रानी की सुंदरता पर मुग्ध हो गये और उन्होंने देविका रानी को अपनी फिल्म कर्म में काम देने की पेशकश की जिसे देविका ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

देविका ने बोल्ड सीन देकर लोगों को किया अचंभित
यह वह समय था जब मूक फिल्मों के निर्माण का दौर समाप्त हो रहा था और रूपहले पर्दे पर कलाकार बोलते नजर आ रहे थे। ​हिमांशु राय ने जब वर्ष 1933 में फिल्म कर्म का निर्माण किया तो उन्होंने नायक की भूमिका स्वयं निभायी और अभिनेत्री के रूप में देविका रानी का चुनाव किया। कर्म में देविका रानी ने हिमांशु राय के साथ एक बोल्ड सीन देकर लोगों को अंचभित कर दिया था।

देविका का पारिवारिक सफर
इसके बाद हिमांशु राय ने देविका रानी से शादी कर ली और मुंबई आ गये, मुंबई आने के बाद हिमांशु राय और देविका रानी ने मिलकर बांबे टॉकीज बैनर की स्थापना की और फिल्म जवानी की हवा का निर्माण किया। वर्ष 1935 में प्रदर्शित देविका रानी अभिनीत यह फिल्म सफल रही ।बाद में देविका रानी ने बांबे टॉकीज के बैनर तले बनी कई फिल्मों में अभिनय किया।

अभिनेता अशोक कुमार ने देविका के लिए कही ये बात
अभिनेता अशोक कुमार ने एक बार अपने साक्षात्कार में फिल्म अछूत कन्या को याद करते हुये देविका रानी के बारे में कहा था, पूछो मत उस जैसी हीरोइन को छू लेने की तमन्ना लिये ना जाने कितने मर गये। अछूत कन्या के प्रदर्शन के बाद देविका रानी फस्र्ट लेडी ऑफ इंडियन स्क्रीन की उपाधि से सम्मानित किया गया। इन सम्मानों से देविका रानी के बारे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में वह कितनी लोकप्रिय रही होंगी।

किस्मत ने तोडे रिकॉर्ड
फिल्म किस्मत बांबे टॉकीज के बैनर तले बनी फिल्मों में सबसे कामयाब फिल्म साबित हुयी।किस्मत ने बॉक्स आफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुये कोलकाता के एक सिनेमा हॉल में लगभग चार वर्ष तक लगातार चलने का नया रिकॉर्ड कायम किया जो काफी समय तक बना रहा।

देविका ने बॉम्बे टॉकीज को कहा अलविदा
वर्ष 1945 में देविका रानी बांबे टॉकीज से अलग हो गयी। देविका रानी का मानना था महज पैसा कमाना बांबे टॉकीज का एकमात्र लक्ष्य नही है हिमांशु राय ने उन्हें सिखाया था कि फिल्म व्यावसायी तौर पर सफल होनी चाहिये लेकिन यह सफलता कलात्मक मूल्यों की बलि देकर नही हासिल की जानी चाहिये। देविका रानी को जब यह महसूस हुआ कि जब वह इन मूल्यों की रक्षा नहीं कर पा रही हैं तो उन्होंने बांबे टॉकीज को अलविदा कह दिया।

देविका रानी को मिला सर्वप्रथम दादा साहब फाल्के पुरूस्कार
फिल्म इंडस्ट्री में उत्कृष्ट योगदान देने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 1969 में जब दादा साहब फाल्के पुरस्कार की शुरूआत की तो इसकी सर्वप्रथम विजेता देविका रानी बनी। इसके अलावा देविका रानी फिल्म इंडस्ट्री की प्रथम महिला बनी जिन्हें पदमश्री से नवाजा गया। अपने दिलकश अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली देविका रानी 09 मार्च 1994 को इस दुनिया को अलविदा कह गयीं।