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यहां श्मशान में मनाते हैं अनोखी दीपावली

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Oct 19, 2017

रतलाम : श्मशान एक ऐसा शब्द जिसे कभी भी कोई भी इंसान सुनना नहीं चाहता। खासकर ऐसे समय जब कोई त्योहार हो। जब कभी भी श्मशान शब्द सुनने में आता है, तो व्यक्ति के सामने एक दृश्य उभर कर सामने आता है, और वह होता है मातम का, शोक का, लोग रोने भी लगते हैं।

कोई नहीं चाहता कि वह त्यौहार के समय में या कभी भी श्मशान जाए, परंतु रतलाम में 1 दिन ऐसा भी आता है, जब लोग खुशी-खुशी उत्साह के वातावरण में श्मशान जाते हैं, खुशियां मनाते हैं, नाचते हैं, गाते हैं, ढोल बजाते हैं, पटाखे छोड़ते हैं, एक दूसरे को बधाई देते हैं। इसमें महिला, पुरुष और बच्चे शामिल होते है।

यह खास दिन नरक चतुर्दशी यानी रूप चौदस का होता है। अक्सर माना जाता है कि महिलाएं बच्चे श्मशान नहीं जाते हैं और यह भी देखा गया है कि महिला बच्चे शमशान के नाम से ही सहम जाते हैं, डर जाते हैं, परंतु नरक चतुर्दशी के दिन रतलाम के त्रिवेणी मुक्तिधाम का नजारा कुछ और ही होता है।

एक तरफ चिता जल रही होती है, उसकी जलती हुई, तड़कती हुई आवाज सुनाई देती है, तो दूसरी तरफ यहां पटाखे छूटते है, ढोल बजते हैं, नाच-गाना होता है, मिठाई वितरित होती है, खुशियां मनाई जाती हैं। ऐसा नरक चतुर्दशी पर होता है। यहां पर प्रेरणा नामक संस्था के लोग एवं आम जन एकत्रित होते हैं और दीपावली मनाते हैं।

यह सिलसिला विगत 9 वर्षों से चला रहा हैं और यहां पर आने वाले लोगों का कहना हैं कि एक दिन शमशान में सभी को आना है और यह उनका अंतिम पड़ाव है। शास्त्रों ने भी मृत्यु को उत्सव माना है और सभी के पुर्वज पितृक यहां पर आए हैं और एक दिन सभी को यहां आना है।

जो लोग यहां पर एकत्रित होते हैं, वह मानते हैं कि वो अपने पूर्वजों को याद कर रहे हैं। उनके साथ दीवाली मना रहे हैं, खुशियां बांट रहे। यहां पर दीपावली वैसी ही बनती है, जैसे घर में मनाते हैं। 5:00 बजे यहां पर लोग एकत्रित हो जाते हैं और दीपावली मनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं।

रंगोली बनती है, फूलों से सजावट होती  है और उसके बाद शाम होते-होते श्मशान में दिखता है अनोखा नजारा। चारों तरफ दीपक जलते नजर आते हैं।  बच्चे, पुरुष सभी एक दूसरे को बधाई देते हुए पटाखे छोड़ते हैं। मिठाई बांटते हैं।

संस्थापक गोपाल सोनी का कहना है कि एक बार वह नरक चतुर्दशी पर त्रिवेणी मुक्तिधाम पर दाह संस्कार में शामिल होने आए थे, इस दौरान मुक्तिधाम के बाहर से पटाखों की आवाज आ रही थी, ढोल की आवाज आ रही थी, लोग खुशियां मना रहे थे और श्मशान में मातम था।

उन्हें भी अपने पूर्वजों की याद आई और उन्होंने  ने ठान लिया की वह श्मशान में नरक चतुर्दशी के दिन पर अपने पूर्वजों की याद में ठीक वैसी दीपावली मनाएंगे जैसे परिवार के साथ सामान्य तौर पर मनाते हैं। उनकी पहल रंग लाई और देखते-देखते कई लोग जुड़ते चले गए। श्मशान में अनोखी दीपावली मनने लगी। इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान युवक-युवतियां शामिल होने लगे और श्मशान में अनोखी दीपावली मानने लगे।