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मण्डलाः कीचड़ भरे राह से पढ़ने की डगर तक, आसान कुछ भी नहीं

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Jul 12, 2019

अमित चौरसिया- ‘शिक्षा का अधिकार’ और ‘स्कूल चले हम’ जैसा मनभावन नारों के बीच प्रादेशिक स्तर पर बहुत कार्य प्रदेश सरकारों द्वारा किया गया। बच्चों को स्कूल जाने के लिए बहुत दूर न जाना पड़े कि अवधारणा के चलते, बेहिसाब इमारतें निर्मित हुई। सत्ताधारी राजनीतिक दलों के बड़े-छोटे नेता और कार्यकर्ताओं ने खूब जमकर ठेकेदारी की। मोटा माल कमाया। अधिकांश स्कूली इमारतें अपनी दुर्दशा को रो रही हैं। कहीं शिक्षक आवश्यकता से अधिक है, तो कहीं शिक्षकों का अकाल पड़ा हुआ है। इमारतें बनाकर सरकार, नेता और अधिकारी अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं, लेकिन अपने पीछे समस्याओं का अंबार छोड़ जाते हैं। पढ़ता मण्डला-बढ़ता मण्डला’ नारे के तहत, शासन द्वारा जिले के मंडला विकासखंड की ग्राम पंचायत देवगांव के एक क़स्बे तलैयाटोला में प्राथमिक स्कूल की इमारत 1998 बनाई गई। इस प्राथमिक पाठशाला में कक्षा एक से पाँच तक के विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। पांचवी पास कर लेने के पश्चात, बच्चों को आगे पढ़ाई करने के लिए माध्यमिक स्कूल में प्रवेश के लिए, पड़ोस के ग्राम हिरदेनगर जाना पड़ता है।

पहले कीचड़ से भरा रास्ता, फिर बिना पुल की नदी, आखिर कैसे पढ़े बच्चे, कैसे बढ़े बच्चे

हैरानी की बात है कि पिछले दो दशकों से तलैयाटोला के यह बच्चे जान की बाजी लगाकर अपने आप को शिक्षित करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। इस छोटे से कस्बे तलैयाटोला से हिरदेनगर स्कूल की दूरी लगभग एक किलोमीटर है। इस मार्ग में ‘मटियारी’ नदी पड़ती है जो कि प्रत्येक बारिश में अपना कहर बरपाती है। जिसकी वजह से यह बच्चे बारिश के चार महीने शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। जनपद पंचायत द्वारा इस नदी का ठेका किया जाता है। जिसमें नाव द्वारा गांव वालों को एवं पढ़ने वाले बच्चों को इस पार से उस पार कराया जाता है। तेज बहाव में बच्चे अपने स्कूल बैग लेकर अपनी जान हथेली पर रखकर   किश्ती पर बैठते हैं और जब तक तट पर नहीं पहुंचते भगवान को याद करते रहते हैं। यही हाल उनकी वापसी पर रहता है। ग्रामीण जनता द्वारा माँग व प्रदर्शन के बावज़ूद, ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, शासन प्रशासन ग्रामीणों की इस विकराल समस्या का समाधान नहीं दे पा रहा है।

जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन की इस अनदेखी से ग्रामीणों में आक्रोश

जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन की इस अनदेखी से ग्रामीणों में आक्रोश है। हैरानी की बात है कि यह गांव मंडला जिला मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर है। भूतपूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष व वर्तमान राज्यसभा सांसद ‘श्रीमती सम्पतिया उइके’ के गाँव से मात्र आधा किलोमीटर की दूरी पर बसे इस ग्राम ‘तलैयाटोला’  के ग्रामीणों और देश का भविष्य बनने वाले नव-निहालों की परेशानी को कोई नहीं समझ पा रहा है। राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को वोट चाहिए होते हैं, लेकिन जनता की समस्या और उनके दुःख दर्द से कोई सरोकार नहीं होता है। यही कारण है कि इस गांव का विकास आज भी सिर्फ कागजों तक  सीमित है। राज्य शासन की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए योजनाएं कागजों पर दर्शनीय हैं। किंतु ज़मीनी धरातल पर, उन योजनाओं को मूर्तरूप कैसे दिया गया है या उस योजना से लोग लाभान्वित हुए या नहीं, इसका ईमानदार आंकलन नहीं किया गया।

बच्चों की पढ़ाई की चिंता करने वाले जनप्रीतिनिधियों, शासन व प्रशासन ने इस बात का ख्याल अवश्य किया होता कि जिन ग्रामीण बच्चों को शिक्षित करने के लिए पाठशालाएं बनवाई जा रही हैं, उन बच्चों के जीवन पर कोई खतरा तो नहीं है। अन्यथा, जिले में थोक के भाव में स्टॉप डैम निर्माण करने वाले प्रशासन ने गांव वालों ने मांग के अनुरूप इस नदी पर स्टॉप डैम या पुल निर्माण करवा दिया होता। कहते हैं ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’, हमारे मण्डला क्षेत्र के जनप्रीतिनिधियों और अधिकारियों में ‘चाह’ नहीं है, वरना इस क्षेत्र में विकास की गति और स्वरूप कुछ और ही नज़र आता होता।