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कड़ी मेहनत कर दीपक तैयार कर रहे कुम्हार, मीडिया की जागरूता से कुम्हारों को मिलेगी राहत

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Oct 30, 2018

सचिन राठौड़ - दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही कुम्हारों ने मिट्टी के दीपक बनाने के काम में तेजी ला दी है जिले के कुम्हार दिनरात मेहनत कर मिट्टी के दीपक बनाने में लगे हुए है साल में एक बार दीपावली पर्व बड़ी संख्या में इन दीपकों को उपयोग होता है, पूर्व में जहां देशी मिट्टी के दीपकों के अलावा कोई विकल्प नही होता था, वही चाईनीज दीपकों ने कुम्हारों को बीते कुछ सालों में निराश किया है हालांकि अब फेसबुक, सोशल मीडिया के माध्यम से आ रही जागरूकता से इन कुम्हारों को फिर से आस बंधी है। और लोगों का रूझान फिर से देशी दीपकों की ओर होने लगा है।

नगर के पानवाड़ी मोहल्ला में बरसो से दीपक बनाते आ रहे कुम्हार संतोष पिता बालकृष्ण गोले ने बताया कि एक माह से दीपक बना रहे है, सुबह 4 बजे से दीपक बनाने का काम शुरू हो जाता है। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद करीब 2500 दीपक प्रतिदिन बना रहे है उन्होंने बताया कि पूर्व में चायना के दीपकों की बढ़ी बिक्री से उन्हें चिंता होने लगी थी लेकिन अब सोशल मीडिया के कारण आ रही जागरूकता से धंधा में उठाव दिख रहा है संतोष का कहना है कि मिट्टी के दीपक को बनाने से लेकर पकाने तक में आने वाला खर्च बढ़ गया है, जिससे उन्हें मेहनत के हिसाब से आर्थिक लाभ नही हो पा रहा है।

उन्होंने बताया कि पहले बाहर से 8 से 10 आयशर भरकर लाखों दीपक बाजार में पहुंच रहे थे, लेकिन इनमें अब कमी आई है धोबडिया तालाब के पास निवासरत कुम्हार रवि गोले ने बताया कि चायना के दीपकों की वजह से पिछले साल करीब 22 हजार दीपक बच गए थे जिसकी वजह से इस बार कम दीपकों का कम निर्माण कर रहे है। उन्होंने बताया कि पिछले साल 50 से 60 हजार दीपक तैयार किए थे। लेकिन इस बार 30 से 35 हजार दीपकों का ही निर्माण कर रहे है। रवि का कहना है कि चायना के दीपक बाजार में आने से उनके धंधे पर काफी फर्क पड़ गया है, लेकिन सोशल मीडिया पर जागरूकता के कारण उनकी बिक्री में अब कमी आई है।