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सिलोकिसिस से तीन माह में दूसरी मौत, अन्य सदस्य भी है प्रभावित

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Aug 20, 2018

संजय लोधा : अपने परिवार के भरण पोषण की चिंता लिये मजदूरी करने के लिए गये एक परिवार सदस्यों की जान पर बन आई है। पत्थर की फैक्ट्री में काम करते हुए इन गरीब मजदूरों को कतई आभास नही होगा कि वे अपने परिवार की पेट भरने की चिंता में खुद के शरीर को मौत के हवाले कर रहे है। अततः अंजाम भी यही हुआ कि सिलोकिसिस की चपेट में आने से एक दंपति को मौत ने अपने आगोश में ले लिया जबकि परिवार का एक अन्य सदस्य मौत से सर्घष करते हुए नजर आ रहा है। 

पूरा मामला पेटलावद तहसील मुख्यालय से 18 किमी दर ग्राम मोर का है। यहां का एक अंबाराम पिता जीवन मोरी अपनी पत्नी बंसतीबाई के साथ काम के सिलसिले में गुजरात के गोधरा शहर के गुजरात मिनरल्स में कार्य के लिये गया। माता-पिता अपने बच्चों के साथ यहां पत्थरो को तोडने के कार्य में लगा रहा यही नही उसने अपने काका हीरालाल मोरी को भी इसी आस से बुलवा लिया कि उनकी मेहनत का फल अपने परिजनो की मदद में सहभागी होगा। लेकिन मामला पूरा उलट गया, अंबाराम और बंसतीबाई चार-पांच साल काम करते हुए धूल में मौजूद सिलिका के कारण अपने फेफडो को खराब करते हुए सिलोकिसिस के चपेट में आ गये। जब शरीर जबाब देने लगा तो वे भागकर घर लौट आये। 


रोजगार का अभाव ले रहा जान
हर हाथ को स्थानीय स्तर पर काम मिले इसके लिये सरकार बडे बडे दावे और वायदे करती है। लाखो -करोडो के कार्य चलने के बाद भी पलायन का दंश झेल रहे ग्रामीणो को स्थानीय स्तर पर कोई सुध लेने वाला नही है। ग्रामो में रोजगार का अभाव जरूरतमंदो को मजबुरी में अन्य प्रांतो में धकेल रहा है। इसीके चलते ग्राम मोर के मोरी परिवार के दो सदस्य तो मौत के आगोश में चले गये तो एक अन्य सदस्य जीवन और मौत से सर्घष करता हुआ नजर आ रहा है। उसके बाद भी इनकी सुध लेने वाला कोई भी नही है। 

सहायता तो दूर सुध लेने वाला कोई नही
पीडित परिजनो से चर्चा में यह बात सामने आई कि स्थानीय स्तर पर काम का अभाव उन्हे गांव की मिटटी को छोडने पर मजबुर करती है। मृतक का पु़त्र पीरू परिवार पर हुए इस वज्रपात से संभलते हुए बताता है कि पत्थरो की कंटिग करते हुए सुरक्षा पर ध्यान नही दिया जाता है। इसीके चलते उसके माता पिता इसकी चपेट में आकर बिमार हो गये। फेफडे का रोग होने के कारण उनका इलाज भी करवाया लेकिन डाक्टरो ने भी जवाब दे दिया। करीब 3 माह पूर्व उसकी मॉ बंसतीबाई का निधन हुआ और 17 अगस्त को उसके पिता का निधन हो चुका है। बताया जाता है कि कुशल श्रमिक में पंजीयन के बाद सहायता तो दुर किसी ने उनकी सुध नही ली है। मृतक के काका हीरालाल मोरी भी मौत से सर्घष करता हुआ दिखलाई दे रहा है। इनके साथ परिवार के अन्य सदस्य भी इन फैक्टरी में काम कर चुके है। इनके स्वास्थ्य की जांच की भी जरूरत है ।