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पलासुन्दर की रहस्यमय पहाड़ी, जहां मिलने वाले पत्थरों के भीतर से निकलते हैं शंख, जो बन चुके फासिल्स

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Feb 20, 2019

अमित चौरसिया- कभी कभी हमें किसी विशेष स्थान पर कुछ ऐसी बातें देखने सुनने को मिलती हैं कि उसके पीछे के रहस्य को जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। मण्डला जिले और पूरे महाकौशल क्षेत्र में भी ऐसा ही क्षेत्र हैं, जहां ऐसी निशानियां बहुतायत में मिलती हैं जो यह बताती हैं कि यहाँ लाखों करोड़ों साल पहले समुद्र लहराता  था। ऐसा ही एक स्थान है नैनपुर के पास पलासुन्दर की पहाड़ी, जहाँ मिलने वाले पत्थर अपने में भूगर्भ या धरती के परिवर्तन का इतिहास समेटे हैं। यहाँ दो तरह के पत्थर या फिर इनकी चट्टान मिलती हैं। एक होता है साधारण पत्थर, जबकि दूसरे पत्थर हैं जिनका लाखों साल पहले यहाँ लहराते हुए सागर से सीधे संबंध है। इन पत्थरों या फिर चट्टानों को जब तोड़ा जाता है तो इनके भीतर से छोटे बड़े आकार के शंख निकलते हैं, जो फासिल्स बन चुके हैं। मण्डला जिले में ऐसे और भी स्थान हैं जहाँ लकड़ी या फिर डायनासोर के फासिल्स प्राप्त हुए हैं और इन तक इतिहासकारों से लेकर भूगोलिक अध्ययन करने वालों तक की पहुंच रही है। 

औनी पौनी मजदूरी देकर लोग इन फासिल्स को ले जा रहे

इतना हैरान कर देने वाले रहस्य के बाद भी शासन, प्रशासन से लेकर खोजकर्ताओं की पहुँच से दूर, यह पाला सुंदर की पहाड़ी करीब आधी सदी से महज ग्रामीणों की उत्सुकता बनी हुई है। बाहरी लोगों में ऐसे लोगों तक ही अपना स्थान बना पाई है जो पत्थर हो चुके इन कीमती शंखों को निकलवाते हैं और औनी पौनी मजदूरी देकर इन फासिल्स को ले जाते हैं। साधारण सी दिखने वाली यह पहाड़ी पर करीब आठ से दस किलोमीटर का विस्तार लिए होगी। जहां पहुंचना ज्यादा दुर्गम भी नहीं है, लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि आज तक इसे सरकार ने वो तवज्जो नहीं दी जो इसे मिलनी चाहिए थी। इतिहासकार या फिर भूगोल को जानने समझने वालों के अनुसार या फिर कोई भी साधारण व्यक्ति भी इन शंखों को देख कर बता सकता है कि ये शंख सिर्फ समुद्रों में ही मिल सकते हैं। मगर ये यहाँ मिलते हैं मतलब यह इतिहास की वह गवाही हैं जो ये फासिल्स खुद दे रहे हैं।

पलासुन्दर की इन पहाड़ियों को संरक्षित करने की आवश्यकता

पलासुन्दर की इन पहाड़ियों के स्थान पर कब सागर लहराता था, इसकी खोज की जानी चाहिए। लहलहाते समुद्र की बात सिर्फ कल्पनाओं में नहीं है क्योंकि जबलपुर के आसपास हुई खोजों ने यह साबित किया है कि यह क्षेत्र कभी पानी के अथाह भंडार से आच्छादित था। यह भी जरूरी है कि पलासुन्दर की इन पहाड़ियों को संरक्षित किया जाए जिससे कि पुरातत्व से लेकर इतिहासकारों तक के लिए शोध के विषय इस पहाड़ी को बचाया जा सके, वर्ना बेशकीमती चीजों के सौदागर इन कीमती प्राकृतिक धरोहरों को माटी मोल खोद कर इस पहाड़ी को ही नष्ट कर देने में जरा नहीं चूकेंगे।