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सड़क पर दिखा महिला रसोइयों का दर्द , 2000 महिला रसोइयों ने किया प्रदर्शन

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Sep 21, 2018

युवराज गौर : सरकार के राज में गड्ढा खोदने वाला मजदूर भी 200 रु, रोज काम रहा है, लेकिन हम तो उनसे भी गए बीते हो गए, 30 रुपये रोज और 1000 रु, महीने के मानदेय में घर चलाये या फिर बच्चो को पाले, कैसे पढ़ेगी बेटी और कैसे बचेगी बेटी ये सवाल स्कूल के बच्चो के लिए खाना बनाने वाली महिला रसोइयों ने सरकार के नुमाइंदों से पूछा है। कम मानदेय मिलने को लेकर बैतुल जिले की लगभग 2000 महिला रसोइयों ने जिला मुख्यालय पर ढोल, बाजे, घंटी और बर्तन बजाकर प्रदर्शन किया। और सड़के जाम कर दी। इनकी मांग है कि भले ही सरकार ज्यादा न दे कम से कम सरकारी दरों पर मानदेय तो दे। महिलाओं का स्पष्ट कहना है कि यदि सरकार ने उनकी नहीं सुनी तो स्कूलों में भोजन बनाना बंद कर दिया जायेगा। 

अपने जले हुए पैर और हाथ दिखाती ये वही महिला है जो रोज पूरी जिम्मेदारी से स्कूल के बच्चो के लिए उसी तरह खाना पकाती है जैसे वे घर पर अपने बच्चो के लिए पकाती है। बदले में इनके हाथ जल रहे है ओर पैर भी पिछले 16 सालों से मात्र 30 रुपये रोज से महिलाएं धुएँ में अपनी आंखें फोड़ रही है। लेकिन ये पूरी जिम्मेदारी से अपना फर्ज निभा रही है रसोइयों का कहना है कि सरकार को झुकना पड़ेगा यदि ऐसा नही हुआ तो नही वे वोट देने जाएंगी न ही किसी को मतदान करने दिया जाएगा। 

प्रदर्शन कर रही महिलाओं के गुस्से का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपने के बाद महिलाओ ने सड़के जाम कर दी। सूचना पर पुलिस अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए। लेकिन महिलाएं हटने के लिए तैयार नही थी। कम मानदेय मिलने को लेकर सीधा आरोप लगाया गया कि सरकार बेटी बचाने और बेटी पढ़ाने की बात कर रही है, अब सरकार ही बताए कि 1000 रु, महीने में बेटी कैसे बचेगी और कैसे पढ़ेगी। 

चुनावी सीजन के ऐन वक्त पर रसोइयों का ये विरोध जायज है क्योंकि आज 30 रु, रोज शायद ही कोई कमा रहा हो। लेकिन जिस तरह ये आंदोलन बढ़ रहा है। वो आंदोलन सरकार को सोचने के लिए मजबूर जरूर कर देगा।