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बालाघाट में संतलाल ने जीते जी करवाई तेरहवीं, पिंडदान और गंगभोज भी करवाया

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Jan 31, 2019

राज बिसेन : पुरानी परम्परा है, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उनके परिजन उसका विधि विधान पूर्वक अंतिम संस्कार करते है फिर किसी तीर्थक्षेत्र में उनका पिंडदान करके तेरहवीं तथा गंगापूजन करवाते है साथ ही सामजिक लोगो के लिए मृत्यु भोज का आयोजन करते है। 

लेकिन बालाघाट जिले के ग्राम गोंगलई निवासी एक शख्स ने मृत्यु से पूर्व जीते जी स्वंय का पिंडदान और गंगापूजन करवाकर लोगो को मृत्युभोज करवा दिया।  हम बात कर रहे है ग्राम गोंगलई निवासी संतलाल लिल्हारे की। जिसके अपने परिवार में दो बेटे थे। जिसमें से एक बेटे की आकस्मिक मृत्यु हो चुकी है। वर्तमान में एक विधवा बहु और एक बेटा है। लेकिन संतलाल परिवार से अलग रहता है और कबाडी का व्यापार करता है। 

वहीं 65 वर्षीय संतलाल लिल्हारे, जिसका मानना है कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी तेरहवीं कोई करता है कि नही, इसलिये उसने अपनी आत्मा शांति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिये जीवित अवस्था में ही सारी प्रक्रिया करवा दिया। जहां संतलाल ने खुद का ही पिंडदान कराया और गांव समाज को गंगभोज भी कराया। धार्मिक परम्पराओ के खिलाफ जाने के बाद भी ग्रामीणो एवं समाज ने अपना समर्थन देकर कार्यक्र्म में शामिल हुए। 

जीते जी अपनी तेरहवीं करवाने वाले संतलाल ने बताया कि वह जीवित अवस्था में तेरहवीं करवा रहा है। तीर्थयात्रा भी कर ली। मुझे मेरे परिवार से उम्मीद नही है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी अंतिम क्रिया होगी। इसीलिए ये सब जीते जी करवा रहा हूँ।

संतलाल की विधि विधान से तेरहवीं करवाने वाले पंडितजी का कहना है कि अपने जीवनकाल में  ऐसा पहली बार देख रहे है। लेकिन शास्त्रो में भी इसका उल्लेख हुआ है। अपनी आत्मा की शांति के लिये ऐसा कार्य किया जा सकता है। सभी के लिये सराहनीय कार्य है। इससे नई प्रेरणा समाज को मिलेगी।