Apr 8, 2025
शिक्षक भर्ती घोटाला : ममता सरकार को मिली बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने बदला फैसला
पश्चिम बंगाल में चल रहे शिक्षक घोटाला भर्ती मामले में ममता सरकार को बड़ी राहत मिलती नजर आ रही है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए शिक्षकों के अतिरिक्त पद बढ़ाने के मामले में सीबीआई जांच को रोक दिया है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी साफ किया कि यह आदेश केवल अतिरिक्त सृजन पर लागू होगा। शिक्षक घोटाला भर्ती के दूसरे पहलुओ पर जो सीबीआई जांच चल रही है। उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन जानकार इसे ममता सरकार के लिए बड़ी राहत मान रहे है।
क्या है शिक्षक भर्ती घोटाला ?
पश्चिम बंगाल में इस समय शिक्षकों भर्ती घोटाला को लेकर न्यायालय और सरकार में जंग का माहौल है। ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समाने खड़ी नजर आ रही है। दरअसल राज्य में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) की ओर से 2016 में 24,640 पदों पर भर्ती परीक्षा आयोजित की गई थी। जिसमें 23 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे। आयोग ने कुल 25,753 को नियुक्ति पत्र जारी किया था। लेकिन इस परीक्षा पर धांधली का आरोप लगाया गया।
मेरिट लिस्ट को रद्द करने के बाद सामने आया शिक्षक भर्ती घोटाला
आयोग ने इस परीक्षा की समयसारणी 2014 में घोषित की। और 2016 में परीक्षा का आयोजन किया गया। जिसकी मेरिट लिस्ट 2017 में आई। लेकिन इस मेरिट लिस्ट में धांधली के आरोप लगाए गए। जिसके बाद बिना कारण बताए आयोग ने मेरिट लिस्ट रद्दकर दी। दूसरी मेरिट लिस्ट में सिलीगुड़ी की रहने वाली बबिता का नाम वेटिंग लिस्ट में 20 की जगह 21 नंबर पर आया। और 20वां स्थान अंकिता अधिकारी को दिया गया।
इस नई लिस्ट के खिलाफ बबिता और उसके एक अन्य साथी ने मई 2017 को कलकत्ता हाईकोर्ट में शिकायत दर्ज कराई। कोर्ट में सीबीआई को मामले में जांच के आदेश दिए। जांचे के आधार पर कोलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अविजीत गंगोपाध्याय ने 2022 में अंकिता अधिकारी को पद से हटा कर उनसे पूरा वेतन वापस लिया और उस स्थान पर बबिता को नियुक्त किया ।
भर्ती में सामने आई अन्य गड़बड़ियां कोर्ट ने दिया भर्ती रद्द करने का आदेश
मामले की आगे जांच में कोर्ट ने पाया कि भर्ती में अन्य गड़बड़ियां भी हैं। जिसके तहत कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस रंजीत कुमार बाग की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया। इस समिति ने ग्रुप-डी और ग्रुप-सी में हुई नियुक्तियों में भी अनियमितता पाई।
समिति का कहना था कि ग्रुप-सी में 381 और ग्रुप-डी में 609 नियुक्तियां अवैध है। साथ ही समिति ने अपनी रिपोर्ट में आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष कल्याणमय गांगुली समेत पांच अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी। इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर हाई कोर्ट ने सीबीआई को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया।
मामले में सीबीआई ने तत्कालीन ममता सरकार के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी से पूछताछ की और ईडी ने धन शोधन की शिकायत पर शिक्षा मंत्री और उनकी महिला मित्र और मॉडल अर्पिता मुखर्जी को हिरासत में लिया। साथ ही अर्पिता के घर छापेमारी कर करोड़ों का कैश बरामद किया।
इन सारी कड़ियों को जोडते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले साल शिक्षा भर्ती को रद्द कर पूरे मामले में सीबीआई जांच के निर्देश दिए। जिसे ममता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उस समय कोर्ट में सीबीआई की जांच पर रोक लगा दी पर भर्ती प्रक्रिया रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा।
ममता सरकार ने किया कोर्ट के आदेश का विरोध

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक भर्ती मामले में सुनवाई करते हुए 3 अप्रैल को एक और फैसला दिया । जिसमें कोर्ट ने शिक्षकों की भर्ती को अन्यायपूर्ण बताया और रद्द करने के आदेश दिए। जिसका सीएम ममता बनर्जी ने विरोध किया और वह शिक्षकों के साथ नजर आई। उन्होंने कहा कि ज़रूरत पड़ने पर सरकार दो महीने के भीतर वैकल्पिक व्यवस्था करेगी। शिक्षक स्वेच्छा से स्कूलों में पढ़ाना जारी रखें।
शिक्षक भर्ती घोटाने में सियासी पार भी तेज हो गया। भाजपा समेत विपक्षी पार्टियां ममता के इस्तीफे की मांग कर रही है। विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का कहना था, "अगर मुख्यमंत्री के पास योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों की सूची मौजूद है तो उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाती ?
शिक्षक भर्ती में कैस तय होगी भविष्य की राह
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल ममता सरकार को कुछ राहत देते हुए। अतिरिक्त भर्तियों पर सीबीआई जांच रोक दी है.. लेकिन सवाल यह है कि अगर इतने शिक्षकों को एक साथ पद से हटाया गया तो बच्चों की पढाई प्रभावित होगी। जिसके लिए कोर्ट ने कोई रास्ता नहीं बताया है। वहीं सरकार के पास इसके लिए क्या वैकल्पिक राह है। इसका जिक्र भी ममता बनर्जी के भाषणों में नजर नहीं आता है। प्रदेश सरकार और कोर्ट के इस खींचतान में शिक्षकों और विद्यार्थियों के भविष्य का क्या होगा। यह सोचने का विषय है।