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कोंडागांवः दिवाली के अवसर पर बंग समुदाय में मां काली की पूजा-अर्चना की रही धूम

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Oct 30, 2019

हिन्दू धर्म में जिस तरह से शक्ति की देवी मां दुर्गा की उपासना की जाती है, ठीक उसी तरह मां काली की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि मां काली अपने भक्तों की रक्षा कर शत्रुओं का नाश करती हैं। कोंडागांव के बंग्ला समुदाय ने दीपावली पर बोरगांव सहित एसटी पारा, बाजार पारा, मध्यम बोरगांव, जुगानी कैंप, पश्चिम बोरगांव, फरसगांव में मां काली की पूजा-अर्चना धूमधाम से की। मां काली पूजा में माता को विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल,108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है। तड़के 4 बजे तक चलने वाली इस पूजा की विधि में होम-हवन व पुष्पांजलि का समावेश होता है। इस मौके पर अधिकांश महिला व पुरुष सुबह से उपवास रखकर रात्रि जागरण कर माता को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

मान्याता है इसी दिन मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं

पौराणिक मान्यता के अनुसार 'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै' यह मंत्र मां काली को समर्पित है। इस मंत्र के उच्चारण से सभी ग्रह नियंत्रित में रहता है। नित्य इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। मां काली की पूजा से भय दूर होता है। रोग से भी मुक्ति मिलती है। मां काली के चार रूप होते हैं। दक्षिणा काली, श्मशान काली, मातृ काली और महाकाली। मां काली की पूजा खासकर पूर्वी भारत में की जाती है। पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक प्रचलित है। दिवाली की रात कार्तिक अमावस्या को मां काली की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्याता है कि इसी दिन मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं। इस दिन पूरे भारत में दीपावली का पर्व मनाया जाता है और लक्ष्मी पूजा जाती है।