Oct 2, 2025
माँ दुर्गा की विदाई का भावुक क्षण: भोपाल कालीबाड़ी में 'सिंदूर खेला' ने बहाया सुहाग का रंग
भावनाओं का लालिमा से सजा विदाई समारोह
दुर्गा पूजा का समापन हमेशा आंसुओं और मुस्कानों का अनोखा संगम होता है, जहाँ माँ दुर्गा को बेटी की तरह विदा किया जाता है। 2 अक्टूबर 2025 को भोपाल की प्रसिद्ध कालीबाड़ी में बंगाली समाज की महिलाओं ने 'सिंदूर खेला' की भावुक रस्म निभाई, जो सुहाग की लंबी उम्र और पारिवारिक सुख की कामना का प्रतीक है। यह परंपरा न केवल बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि हृदयस्पर्शी विदाई का वह क्षण है, जहाँ लाल सिंदूर आंसुओं को रंगीन बना देता है। इस वर्ष यह आयोजन 'ऑपरेशन सिंदूर' को समर्पित रहा, जो परंपरा के संरक्षण का संदेश देता है।
सिंदूर खेला: सुहाग की लालिमा से रंगी होली
सिंदूर खेला दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, विजयादशमी पर मनाया जाने वाला भावपूर्ण रस्म है, जिसे 'सिंदूर की होली' भी कहा जाता है। विवाहित महिलाएँ पारंपरिक लाल-सीधी सफेद साड़ियों में सजकर माँ दुर्गा के चेहरे पर पान के पत्तों से सिंदूर लगाती हैं, मानो अपनी सखी को विदा कर रही हों। फिर, वे आपस में सिंदूर मलकर एक-दूसरे के माथे, गालों और कंधों पर लगाती हैं – यह खेल हँसी-ठिठोली से भरा होता है, लेकिन अंत में आंसू बहते हैं। यह रस्म पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्रार्थना है, जो बंगाली संस्कृति में 400 वर्ष पुरानी है। माना जाता है कि माँ दुर्गा हर वर्ष मायके आती हैं, और सिंदूर खेला उनकी भावुक विदाई का प्रतीक है।
कालीबाड़ी में रस्म का भावुक चित्रण
भोपाल की दक्षिणेश्वर कालीबाड़ी में यह रस्म बड़े धूमधाम से निभाई गई। महिलाओं ने माँ दुर्गा को मिठाई और पान अर्पित कर भोजन कराया, फिर ढोल-नगाड़ों पर धुनुची नृत्य किया – जहाँ जलती धुनची में नारियल जलाते हुए नृत्य करतीं महिलाएँ आग की लपटों में अपनी भक्ति उड़ेलती नजर आईं। विदाई के क्षण में हर आँख नम हो गई, क्योंकि मूर्ति विसर्जन के साथ माँ का प्रस्थान हो जाता है। इस आयोजन ने समुदाय में प्रेम और एकता का संदेश दिया, जहाँ युवा पीढ़ी भी जुड़कर परंपरा को जीवंत कर रही है। 'रंग-रस-रीति' थीम पर सजे पंडालों में बंगाली संस्कृति की झलक मिली।
महत्व: हृदयस्पर्शी संदेश सुहाग और संस्कृति का
यह रस्म केवल खेल नहीं, बल्कि भावनाओं का त्योहार है – सुहागिनों के लिए आशीर्वाद, और समाज के लिए भाईचारे का प्रतीक। भोपाल जैसे शहर में यह बंगाली समुदाय की जड़ों को मजबूत करता है, नई पीढ़ी को विरासत सौंपता है। माँ दुर्गा की विदाई हमें सिखाती है कि अलगाव दुखी नहीं, बल्कि अगले आगमन की आशा है। इस भावुक क्षण ने सभी को छू लिया, यादें अमिट कर दीं।