Oct 27, 2025
छठ महापर्व: डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की अनोखी परंपरा का गूढ़ रहस्य
छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है, केवल एक त्योहार नहीं है बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं, कठोर तपस्या और सूर्य की ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता का अनूठा संगम है. यह पर्व अपनी कुछ अनोखी परंपराओं के कारण ही अन्य हिंदू पर्वों से एकदम अलग और विशेष है.
डूबते सूर्य को अर्घ्य का महत्व
छठ दुनिया का एकमात्र ऐसा प्रमुख त्योहार है जहाँ उगते सूर्य के साथ-साथ अस्ताचलगामी सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. यह परंपरा जीवन के हर पक्ष और हर पल की समान महत्ता को स्वीकार करने का प्रतीक है. मान्यता है कि डूबते सूर्य को दिया गया अर्घ्य सूर्यदेव की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित होता है, जो संध्या की अंतिम किरणों की देवी हैं. यह Ritual हमें सिखाता है कि जीवन में अस्त होने वाली हर चीज़ का भी उतना ही महत्व है, क्योंकि हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत देता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
इस परंपरा का एक वैज्ञानिक पक्ष भी है। सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों की तीव्रता कम होती है, जिससे मानव शरीर को बिना किसी नुकसान के पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है. यह शरीर में कैल्शियम के संतुलन और overall health के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है.
अन्य अनूठी परंपराएं
बिना पुरोहित के पूजन: छठ में कोई पुरोहित या पंडित आवश्यक नहीं होता। भक्त स्वयं ही सारे विधि-विधान संपन्न करते हैं, जो इसे जन-जन की आस्था का प्रतीक बनाता है.
पवित्र वस्त्र: व्रती सादगी और शुद्धता का भाव प्रकट करते हुए बिना सिलाई वाले सूती वस्त्र (साड़ी या धोती) धारण करते हैं.
घर में बना प्रसाद: मुख्य प्रसाद ठेकुआ एक पवित्र स्थान पर, मिट्टी के नए चूल्हे और आम की लकड़ी पर ही घर में बनाया जाता है। इसे बाजार से खरीदा नहीं जाता.







