Apr 8, 2024
Lok sabha election dewas : विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद प्रदेश में फिर लोकसभा चुनाव ने राजनीतिक हलचले बड़ा दी है हालांकि विधानसभा चुनाव कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहा है लेकिन एक बार फिर भाजपा कांग्रेस आमने-सामने नजर आ रही है. चुनाव आयोग द्वारा जारी तारिखो के मुताबिक, देवास लोकसभा सीट पर 13 मई को मतदान होगा और चुनाव नतीजे 4 जून को घोषित किए जाएंगे.
मां चामुंडा देवी की भक्ति के लिए प्रसिद्ध देवास नगरी राजनीतिक रूप से भी मायने रखती है देवास क्षेत्र को आरएसएस का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस संसदीय क्षेत्र की जनता किसी एक दल की होकर नहीं रही वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट के पहले सांसद कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा रहे इसके बाद भाजपा के दो सांसदों ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया
यहां 4 जिलों की 8 विधानसभाएं शामिल है
देवास-साजापुर लोकसभा सीट में चार जिलों की आठ अलग-अलग विधानसभाओं को शामिल किया है. इनमें देवास जिले की देवास, सोनकच्छ और हाटपिपलिया, आगर मालवा जिले की आगर, शाजापुर जिले की शाजपुर, सुजालपुर और कालापीपल, सीहोर जिले की आष्टा विधानसभा शामिल है. इन सभी विधानसभाओं पर भाजपा का कब्जा है.
देवास में किस समाज का दबदबा ?
परिसीमन के पहले यह शाजापुर संसदीय क्षेत्र कहलाता था तब भी जनसंघ, जनता पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवार जीते इस सीट पर बलाई, खटीक समाज का वोट बैंक निर्णायक माना जाता है जो दल जातियों को साधकर चुनाव लड़ता है, उसकी चुनावी राह ज्यादा आसान मानी जाती है. इस बार भी भाजपा और कांग्रेस ने बलाई समाज के खाते में टिकट बांटे हैं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राधा किशन मालवीय के बेटे राजेंद्र मालवीय को इस बार
भाजपा प्रत्याशी महेंद्र सोलंकी कौन ?
भाजपा के प्रत्याशी महेंद्र सोलंकी न्यायाधीश के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. और वें न्यायापालिका की सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया. महेंद्र सोलंकी ने पहला चुनाव साल 2019 में लड़ा. और जीत हासिल करते हुए बीजेपी का परचम लहराया. इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने महेंद्र सिंह सोलंकी पर एक बार फिर भरोसा जताया.
भाजपा उम्मीदवार महेंद्र सिंह सोलंकी की ताकत
1. बलाई समाज से आते हैं और क्षेत्र में समाज का वोटबैंक ज्यादा है।
2. भाजपा का परंपरागत वोटबैंक और संघ का नेटवर्क मददगार
कमजोरी
• चुनाव में दूसरी बार मौका मिला है। एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का खतरा
• देवास को कोई बड़ी सौगात नहीं दिला पाए। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बड़ा संकट
कौन है राजेंद्र मालवीय ?
इंदौर के रहने वाले राजेंद्र मालवीय राजनीतिक पृष्ठभूमि से लंबे समय से जुड़े हुए नेता हैं उनके पिता स्वर्गीय राधाकिशन मालवीय लंबे समय तक मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चूके हैं कांग्रेस नेताओं के मुताबिक दो बार राजेंद्र मालवीय विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं उन्हें सबसे पहले टिकट इंदौर जिले के सांवेर से विधानसभा का मिला था. इसके बाद दूसरी बार उज्जैन जिले की तराना सीट से राजेंद्र मालवीय ने विधानसभा का चुनाव लड़ा और दोनों ही चुनाव में मालवीय को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन इस बार पार्टी ने उन पर बड़ा दांव खेला है.
कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र मालवीय की ताकत
1. पिता राधाकिशन मालवीय का क्षेत्र में अच्छा नेटवर्क रहा है. ये भी बलाई समाज से आते हैं.
2. कांग्रेस का नया चेहरा है, पटवारी के प्रदेशाध्यक्ष बनने से खाती समाज भी कर सकता है मदद
कमजोरी
• कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक कम, चुनावी मैनेजमेंट में भी कमजोर.
• हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली.
कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद भी रह चूके सांसद
परिसीमन के बाद देवास लोकसभा में 8 सीटें आती हैं.देवास-शाजापुर संसदीय सीट पर दूसरे शहर में रहने वाले नेताओं को भी यहां की जनता ने संसद तक भेजा है यहां से वर्ष 2009 में सज्जन सिंह वर्मा सांसद बने, जो इंदौर के निवासी हैं. इसके अलावा मनोहर ऊंटवाल भी यहां से सांसद चुने गए थे, वे भी लोकसभा क्षेत्र के निवासी नहीं थे. परिसीमन से पहले फूलचंद वर्मा और वर्तमान कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद्र गहलोत भी यहां से सांसद रहे. फूलचंद वर्मा इंदौर के निवासी रहे हैं और थावरचंद गेहलोत उज्जैन जिले के नागदा क्षेत्र में रहते हैं. मौजूदा सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी देवास संसदीय क्षेत्र के ही निवासी हैं. 1984 में चुनाव जीते बापूलाल मालवीय भी शाजापुर संसदीय क्षेत्र के निवासी रहे हैं
2019 चुनाव का परिणाम क्या था?
पिछले 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा ने महेंद्र सोलंकी को मैदान में उतारा था. महेंद्र सोलंकी ने 2019 में यहां से कांग्रेस के खिलाफ 862429 वोट हासिल कर जीत दर्ज की. इस चुनाव में उन्हें कुल मतदान का 61.65 फीसदी वोट हासिल हुए थे. जबकि कांग्रेस के प्रहलाद सिंह टिपानिया को 490180 वोट यानी कुल मतदान का 35.04 फीसदी ही मिल पाया था.
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट
देवास में वर्ष 1951 में जब पहली बार आम चुनाव हुए, तब यह मध्य भारत के नाम से ही क्षेत्र को जाना जाता था. पहले चुनाव में लोकसभा सीट को शाजापुर-राजगढ़ संसदीय क्षेत्र नाम दिया गया. शुजालपुर निवासी लीलाधर जोशी और शाजापुर के भागीरथ मालवीय सांसद चुने गए. वहीं वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश का गठन हुआ उसके बाद 1957 में लोकसभा चुनाव हुए. औऱ 1967 से यह शाजापुर-देवास संसदीय सीट रही, जिसमें देवास का आधा हिस्सा जोड़ दिया गया था. वर्तमान देवास सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है. देवास में कुल वोटरों की संख्या 1931664 है. इसमें 989992 पुरुष और 941649 महिला मतदाता हैं. जबकि, 23 वोट अन्य वर्ग के हैं जबकि जातीय समीतकरण की बात करें तो यहां 24.29 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति और 2.69 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है.
देवास संसदीय क्षेत्र का लोकसभा इतिहास क्या है?
देवास लोकसभा क्षेत्र में जीतने और हारने वालों के बीच मुकाबला कभी इतना करीबी नहीं रहा और यहां जीत का अंतर हमेशा बड़ा रहा है। वोट प्रतिशत के संदर्भ में, सबसे कम अंतर 1957 में 1.2 प्रतिशत था और तब से यह अंतर कभी भी अधिक रहा है। 2014 के चुनाव में जीत का अंतर 24.5 फीसदी तक पहुंच गया था. इसी तरह 2019 में बीजेपी के महेंद्र सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रहलाद सिंह डिबानिया को 3.7 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया.
1990 के बाद देवास की राजनीति में पूर्व राजपरिवार का दखल बढ़ा. इसी दौरान राजघराने के पूर्व मंत्री स्वर्गीय तुखोजीराव पवार भी राजनीति में आये. 1991 में, भाजपा के भूलचंद वर्मा चौथी बार सांसद बने, लेकिन तुखोजीराव पवार के साथ उनके राजनीतिक संबंध कभी भी सहज नहीं रहे, तुखोजीराव के तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशापव ठाकरे से पारिवारिक संबंध थे। 1996 में धुगोजीराव पवार के अनुरोध पर थावरचंद गेहलोत को देवास संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया गया। थावरचंद गेहलोत चुनाव जीत गए. वह 2009 तक सांसद रहे. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में थावरचंद गेहलोत को हराने के लिए पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा को मैदान में उतारा था. चाल काम कर गई और सज्जन सिंह ने तवरचंद गेहलोत को हरा दिया.