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यूपी के स्कूलों में बच्चों के बर्तनों की भी हैं जातियां...

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Sep 28, 2021

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के एक सरकारी स्कूल में दलित बच्चों को मिड डे मील खाने के बाद अपने बर्तन अलग कमरे में रखने पड़ते हैं ताकि ऊंची जाती के बच्चों के बर्तन से छू न जाएं। इसे सदियों पुरानी परंपरा बताने वाली प्रिंसिपल को सरकार ने निलंबित कर दिया। तो इसके विरोध में गांव के ऊंची जाति‍ के लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। इसलिए सोमवार को स्कूल में कुल 80 बच्चों में सिर्फ 26 दलित बच्चे ही पढ़ल आए। अगड़ी जाति वालों का कहना है कि निलंबित प्रिंसिपल वापस आएंगी तभी उनके बच्चे स्कूल जाएंगे।

बर्तनों में भी बांट दी जाति

प्राथमि‍क विद्यालय दउदापुर में सारे बच्चे पढ़ते तो साथ ही हैं, लेकिन मिड डे मील खा उन्हें अपने बर्तन जाति के हिसाब से अलग-अलग रखने पड़ते हैं। बायीं तरफ दलित बच्चों के बर्तन रखने का कमरा है और दायीं तरफ किचन है जहां ऊंची जाति और ओबीसी बच्चों से बर्तन रखवाए जाते हैं। प्रधान पति ने रसोइया से सारे बच्चों के बर्तन धोने कहा तो उसने नाराज होकर नौकरी छोड़ दी।

रसोइयां में भी भेदभाव

यूपी के बहुत सारे स्कूलों में अक्षय पात्र जैसी किचन सेसवा चलाने वाली संस्था मिड डे मील बनाकर गर्म खाना स्कूलों में सप्लाई करती है। वहां इस तरह की समस्या नहीं है। लेकिन बहुत सारे स्कूलों में जहां रसोइया खाना बनाकर मिड डे मील देता है, बच्चों को वहां दोनों तरह की समस्याएं हैं। अगर रसोइया दलित है तो बहुत सारे ऊंची जाति के बच्चे उसका खाना खाने से मना करते हैं और अगर रसोइयां ऊंची जाति से है तो वो दलित बच्चों के साथ भेदभाव करता है।

भोजन पर जाति का कहर

मैनपुरी के दउदापुर की आबादी करीब डेढ़ हजार है। इनमें करीब 654 फीसदी अगड़ी और पिछड़ी जाति के लोग हैं और करीब 35 फीसदी दलित। स्कूल की श‍िकायत होने पर श‍िक्षा विभाग ने रसोइया और उसकी सहायिका को नौकरी से निकाल दिया और प्रिंसिपल को सस्पेंड कर दिया। इससे नाराज अगड़ी और पिछड़ी जाति वालों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया।

दलितों की सियासत में वोट के लिए चाहे जितनी पूछ हो, लेकिन समाज में तो बहुत जगह दउदापुर प्रथामिक विद्यालय जैसे ही हालात हैं।