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पखांजुरः पोरियाहूर में कुपोषण का शिकार हो रहे बच्चे, सरकारी सुविधाओं व योजनाओं से वंचित अनाथ है ये गांव

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Jul 2, 2019

अमर मंडल- कोयलीबेड़ा ब्लाक के ग्राम पंचायत माचपल्ली के आश्रित नक्सल प्रभावित गाँव पोरियाहूर में कुपोषण के चलते पाँच साल के मासूम बच्ची कुमारी लक्ष्मी पददा की एक महीना पूर्व 28 मइ को मौत हो चुकी है। पोरियाहूर गाँव पखांजुर मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर जंगलों के बीच स्थित है। जहाँ कुल 13 आदिवासी परिवारों के 80 सदस्य रहते हैं। ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे इस गाँव के लोगों तक शासन की कोइ भी योजनाएं आज तक नहीं पहुंच पायी है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर यहाँ न तो मितानिन आते हैं और न ही आंगनबाड़ी का ठीक से क्रियान्वयन होता है। प्राथमिक उपचार के लिए इन बेबस ग्रामीणों को उफ़नती नदी को पार कर संगम में बने उप स्वाथ्य केंद्र तक पहुंचना होता है, पर यहां तक का उनका सफर सड़कों के न होने के चलते बेहद कठिन होता है।

गाँव में दर्जनों कुपोषित बच्चे इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे

गाँव में अब भी कई कुपोषित बच्चे हैं जो इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। इससे पहले भी कुपोषण के मामले में पोरियाहू गाँव खबरों के सुर्खियों में कइ बार रहा। वावजूद इसके प्रशासन ने इन मासूम बच्चों के स्वस्थ पर कोइ ध्यान नहीं दिया, जिसकी कीमत 5 साल की मासूम बच्ची लक्ष्मी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। गाँव में दर्जनों कुपोषित बच्चे हैं जिनमें से 2 की स्थिति बेहद नाजुक है। जब उनके परिजनों से बात की गयी तो उन्होंने जो बताया वो वाक़ई चौकाने वाला था। उन्होंने प्रशासन के प्रति नाराज़गी जताते हुए कहा कि इस गाँव में न तो स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, न ही बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा या स्वच्छता सुविधा। यहां के ग्रामीण लोकतंत्र के हर पर्व में अपना वोट इस उम्मीद से देते हैं कि आने वाली सरकार उनके गाँव की तस्वीर को बदलेंगी, पर तस्वीर तो दूर उनके वोटों से सत्ता के सिंहासन पर बैठने वाले नेता उनसे मिलने तक नहीं पहुँचते। यहाँ बच्चों के पेट फुले हुए और शरीर पर गहरे घाव हैं। जिनका प्राथमिक इलाज़ तक इनको नसीब नहीं हो पाता है।

सरकार और प्रशासन के आला अधिकारी बने हुये लापरवाह

यहाँ सरकार और प्रशासन के आला अधिकारी गिद्ध बनकर इन मासूम ज़िन्दगियों की मौत का इंतज़ार करते हैं। यहाँ चारों ओर गंदगी का आलम है। स्वच्छ भारत का ढोल पीटने वाली सरकार के शौचालय यहां बन ही नहीं पाए। कुपोषण के साथ-साथ यहां महामारी भी अब तक कई जाने ले चुकी है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इस गाँव में हुए मौतों की जानकारी तक शासन के नुमाइंदों को नहीं होती। 15 साल बाद प्रदेश में सरकार बदली पर इस गाँव की तस्वीर अब तक नहीं बदल पायी है। एक बार फिर बारिश आ चुकी है, एक बार फिर से यहाँ के लोगों की ज़िंदगी नर्क बनने वाली है। फिर से कई ज़िंदगी इलाज़ और सड़क के अभाव में दम तोड़ने वाली है और एक बार फ़िर सरकार और अधिकारी इन बेबस ज़िन्दगियों से मुँह फेरकर कुम्भकर्णीय नींद सोने को तैयार हैं। अगर प्रशासन इन बेबस ग्रामीणों की ओर मदद का हाथ बढ़ाती तो शायद मासूम लक्ष्मी जैसी कई ज़िंदगी अपने माता-पिता के गोद में खेल रही होती पर शासन की लापरवाही के चलते यहाँ कई ज़िंदगी खिलने से पहले ही मौत की नींद सो जाती है।