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20 साल तक अंधेरे कमरे में कैद रही बच्ची: नाम भूल गई, आँखें खो दी, अब 28 की उम्र में मिली आजादी!

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Dec 5, 2025

20 साल तक अंधेरे कमरे में कैद रही बच्ची: नाम भूल गई, आँखें खो दी, अब 28 की उम्र में मिली आजादी!

अनिल राव जगदलपुर : छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से मानवता को शर्मसार करने वाली दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। एक मासूम बच्ची को महज 8 साल की उम्र में घर के एक छोटे से कमरे में कैद कर दिया गया और पूरे 20 साल तक उसे बाहर की दुनिया नहीं दिखाई गई। आज जब उसे रेस्क्यू किया गया तो उसकी उम्र 28 साल हो चुकी है। लंबे अर्से तक अंधेरे में रहने से उसकी दोनों आँखें लगभग जवाब दे चुकी हैं और वह अपना नाम-पता तक भूल चुकी है। यह घटना न सिर्फ क्रूरता की पराकाष्ठा है बल्कि मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है।

8 साल की मासूम को बना दिया कैदी

परिवार ने बच्ची को 8 साल की छोटी सी उम्र में ही घर के एक छोटे कमरे में बंद कर दिया था। कारण जो बताया जा रहा है, वह और भी चौंकाने वाला है। परिवार का दावा है कि लड़की बचपन से ही मानसिक रूप से अस्वस्थ थी और बाहर निकलने पर खुद को या दूसरों को नुकसान पहुँचा सकती थी। इसलिए उन्होंने उसे “सुरक्षा” के नाम पर आजीवन कैद कर दिया। 20 साल तक न धूप देखी, न खुली हवा, न कोई इंसानी संपर्क।

रेस्क्यू के समय हालत देखकर रो पड़े अधिकारी

जब प्रशासन को शिकायत मिली और टीम ने कमरे का ताला तोड़ा तो अंदर का नजारा दिल दहला देने वाला था। 28 साल की युवती फटी पुरानी साड़ी में ज़मीन पर पड़ी थी। उसकी आँखें लगभग अंधी हो चुकी थीं, शरीर कमज़ोर और चेहरा भावहीन। बार-बार नाम पुकारने पर भी वह सिर्फ़ धीमी सी आवाज़ में कुछ बुदबुदाती थी। उसे अपना नाम तक याद नहीं था। लंबे समय तक अंधेरे में रहने से उसकी रेटिना बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है।

इलाज जारी, रोशनी लौटने की उम्मीद बेहद कम

बस्तर कलेक्टर ने बताया कि मामला गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन का है। अवैध नज़रबंदी, लापरवाही और संभावित अपराध के तहत केस दर्ज किया जा रहा है। मेडिकल टीम के अनुसार आँखों की रोशनी वापस आने की संभावना न के बराबर है, लेकिन धीरे-धीरे उसकी शारीरिक स्थिति और प्रतिक्रिया में सुधार दिख रहा है। उसे विशेष मनोचिकित्सक और नेत्र विशेषज्ञों की देख-रेख में रखा गया है।

समाज के लिए एक सबक

यह घटना यह सवाल उठाती है कि क्या हम अपने घरों में भी इंसानियत को कैद कर रहे हैं? एक बच्ची को 20 साल तक जिंदा दफ़न कर देने की यह क्रूरता बताती है कि मानसिक बीमारी के नाम पर कितनी आसानी से इंसान के अधिकार छीने जा सकते हैं।

Report By:
Monika