Sep 25, 2025
Shardiya Navratri 2025: देपालपुर का महिषासुर मर्दिनी मंदिर, जहां दिन में तीन बार रूप बदलती हैं माता
शारदीय नवरात्रि 2025 का पावन पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है, और माता दुर्गा के भक्तों में भक्ति का ज्वार उफान पर है। मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के देपालपुर कस्बे में स्थित अतिप्राचीन महिषासुर मर्दिनी मंदिर इस नवरात्रि का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। यह मंदिर अपनी चमत्कारी शक्तियों और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है, जहां माता दिन में तीन बार रूप बदलती हैं – सुबह बाल रूप, दोपहर किशोर रूप और रात वृद्ध रूप में दर्शन देती हैं। विशेष रूप से संतान सुख प्रदान करने वाली माई के रूप में प्रसिद्ध यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने का प्रतीक है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां उमड़ रहे हैं, और मंदिर का दिव्य माहौल आस्था को और गहरा कर रहा है।
मंदिर का ऐतिहासिक निर्माण और किवदंतियां
देपालपुर का यह महिषासुर मर्दिनी मंदिर मालवा अंचल की धरोहर है, जो सदियों पुरानी आस्था का प्रतीक है। स्थानीय पुजारी शंकर पूरी गोस्वामी के अनुसार, मंदिर का निर्माण राजा भोजपाल ने करवाया था, जो परमार वंश के एक प्रमुख शासक थे। किवदंतियों में कहा जाता है कि नवरात्रि की नवमी तिथि पर माता को विशेष रूप से प्याला अर्पित किया जाता है, जो उनकी शक्ति का प्रतीक है। एक रोचक घटना सैकड़ों वर्ष पुरानी है, जब एक तत्कालीन तहसीलदार ने मंदिर के चमत्कार पर संदेह जताया और खुदाई का आदेश दिया। लेकिन माता ने स्वप्न में दर्शन देकर अपनी महिमा का बोध कराया। परिणामस्वरूप, उसी तहसीलदार ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, जिसके बाद यह भक्तों का प्रमुख तीर्थस्थल बन गया। आज भी यह मंदिर मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, और नवरात्रि के दौरान यहां का वातावरण भक्ति रस से सराबोर हो जाता है। मंदिर की वास्तुकला में प्राचीन शिल्पकला की झलक मिलती है, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाती है।
संतान सुख की कामना का केंद्र
यह मंदिर विशेषकर उन दंपतियों के लिए वरदान सिद्ध होता है, जो संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं। भक्तों की मान्यता है कि माता महिषासुर मर्दिनी की कृपा से बांझ कुपुत्री भी सुखी मां बन जाती हैं। संतान प्राप्ति के बाद भक्त मंदिर लौटकर विशेष पूजन और आभार व्यक्त करते हैं, जो यहां की एक भावुक परंपरा है। नवरात्रि में यह महत्व और बढ़ जाता है, क्योंकि माता की आराधना से परिवार में सुख-समृद्धि का आगमन माना जाता है। कई पीढ़ियों से चली आ रही कहानियां सुनने को मिलती हैं, जहां माता ने असंभव को संभव कर दिखाया। यह आस्था का ऐसा बंधन है, जो भक्तों को बार-बार यहां खींच लाता है।
दिन में तीन रूपों का चमत्कार
मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है माता की मूर्ति का दिन में तीन बार रूपांतरण। सुबह के समय माता बाल्यावस्था में कोमल और शांत मुद्रा में दर्शन देती हैं, दोपहर में किशोरावस्था की ऊर्जा से भरीं दिखती हैं, जबकि रात में वृद्धावस्था के गंभीर स्वरूप में भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस चमत्कार को प्रत्यक्ष देखने के लिए सुबह से ही लंबी कतारें लग जाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भले ही इसे प्रकाश और छाया का खेल कहा जाए, लेकिन भक्त इसे माता की लीला मानते हैं। रात्रि में युवतियां पारंपरिक गरबा नृत्य के माध्यम से माता की स्तुति करती हैं, जो मंदिर को उत्सव का रूप दे देता है। यह दृश्य नवरात्रि की रौनक को दोगुना कर देता है।
अनूठी परंपराएं और मन्नत प्रथा
मंदिर में मन्नत मांगने की परंपरा भी अद्भुत है। महिलाएं मंदिर के पीछे गोबर से उल्टे स्वास्तिक बनाकर अपनी कामना व्यक्त करती हैं। मन्नत पूरी होने पर वे वापस आकर स्वास्तिक को सीधा करती हैं, जो आभार का प्रतीक है। विशेष रूप से माता के दर्शन के लिए लोग अपने छोटे बच्चों को लाते हैं और उनका मत्था टेकवाते हैं, ताकि माता का आशीष उनके जीवन पर सदा बना रहे। ये रीति-रिवाज मालवी संस्कृति की जीवंतता को दर्शाते हैं।
नवरात्रि में विशेष आयोजन
नवरात्रि के नौ दिनों में मंदिर सज-धजकर जगमगा उठता है। यज्ञ, हवन, अनुष्ठान और कुमकुम पूजन जैसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें सैकड़ों भक्त शामिल होते हैं। महिलाओं के लिए विशेष कुमकुम पूजन का आयोजन घर-परिवार की सुख-शांति और विश्व कल्याण की प्रार्थना के लिए किया जाता है। गरबा और भजन की महफिलें रात भर चलती हैं, जो भक्ति को आनंदमय बना देती हैं। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी। (शब्द: 72)