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फांसी की सजा से डाकू बना संत...

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Aug 31, 2017

भोपाल : रामरहीम और आशाराम जैसे ढोंगी बाबा और संत डाकूओं की तरह काम कर संतों को बदनाम कर रहे हैं, लेकिन 60 के दशक में चम्बल पर आतंक का पर्याय बने डाकू पंचम सिंह अपने जीवन में परिवर्तन कर संत बन गए हैं। आज ब्रम्हकुमारी आश्रम से जुड़कर धर्म और सदमार्ग की राह पर चलने का रास्ता लोगों को दिखा रहे हैं।

डाकू पंचम सिंह के बारे में आप को बता दे कि यह 36 साल की उम्र जंगल चले गए थे और डाकू बन गये थे। 100 से अधिक हत्याएं और 250 से अधिक डकैतियां इन्होंने की थी और 14 साल तक इनका आतंक चला। इसके बाद इंदिरा गांधी के कहने पर इन्होंने अपने साथियों के साथ आत्म समर्पण कर दिया था। कानून ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी, पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने इनकी फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद डाकू पंचम सिंह संत बन गए और ब्रम्हकुमारी आश्रम से जुड़ गए।

वर्तमान में रामरहीम और आशाराम जैसे संतो पर पंचम सिंह का कहना हैं कि ऐसे लोगों को पेड़ से बांधकर जिन्दा जला देना चाहिए, साथ ही वर्तमान में भ्रष्टाचार से भी वह दुखी हैं। युवाओं को सदमार्ग पर चलने को कहा हैं।