Jul 27, 2024
महाराष्ट्र में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसी वजह से सत्तारूढ़ गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर बातचीत आधिकारिक तौर पर शुरू नहीं हो पाई है. हालांकि सीटों को लेकर घटक दलों के बीच खींचतान अभी से शुरू हो गई है. महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. एनडीए में शामिल दलों की मांग को देखते हुए यह गणित सुलझना आसान नहीं दिख रहा है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी 150 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना 100 सीटें चाहती है. जबकि उपमुख्यमंत्री अजित पवार की पार्टी एनसीपी 80 सीटें चाहती है.
भाजपा के लिए महाराष्ट्र में अपने सहयोगी दलों को एकजुट रखना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी , अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना निराशाजनक प्रदर्शन रहा है. तीनों दल मिलकर 48 में से सिर्फ 17 सीटें ही जीत पाए थे. वहीं महा विकास अघाड़ी को 30 सीटों पर शानदार जीत मिली थी. लोकसभा चुनावों के लेकर जानकारों का कहना है कि चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर असहमति ने एनडीए के खराब प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई.
सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार ने बीजेपी के सहयोगी दल उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस के साथ गुरुवार को नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और सीट बंटवारे पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि जूनियर पवार पर उनकी पार्टी के नेताओं का दबाव है कि वे 80-90 सीटों से कम पर समझौता न करें. उनका तर्क है कि उन्हें उन सभी 54 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, जो अविभाजित एनसीपी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जीती थीं. शरद पवार के नेतृत्व वाली अविभाजित एनसीपी ने 2019 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में 120 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था.
सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि अजित पवार गुट जानता है कि वह मुश्किल स्थिति में है. लोकसभा चुनाव में शरद पवार गुट ने आठ सीटें जीतीं. वहीं अजित पवार के गुट ने एक लोकसभा सीट जीती. बारामती सीट भी शरद पवार के खाते में ही आई. अजित पवार ने अपनी चचेरी बहन और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सूले के सामने अपनी पत्नी को मैदान में उतारकर इस चुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया है था. लेकिन , नतिजों में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने ही वहां से चुनाव जीता.
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही हैं कि पिछले साल जुलाई में विभाजन के बाद अजित पवार की पार्टी के कई नेता एनसीपी में लौटने के लिए शरद पवार के समूह के संपर्क में हैं. इससे अजित पवार पर यह तय करने का दबाव बढ़ रहा है कि क्या पार्टी असंतोष को कम करने के लिए पर्याप्त उम्मीदवार मैदान में उतार सकती है या नहीं.








