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मध्यप्रदेश के 'वो तीन नेता'

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Jun 14, 2023

देवाशीष उपाध्याय :  समय का पता नहीं चलता ये तो बिलकुल ही सही बात है. लगता है अभी की ही तो बात थी जब मध्यप्रदेश के कांग्रेसी नेता अतनी जीत का जश्न मनाते हुए एक दूसरे को गले से लगा रहे थे. अब बात मध्यप्रदेश कांग्रेस की हो रही है तो ऐसे तीन नेता है जिनकी बात करे बिना कोई भी लेख पुरा तो नहीं ही हो सकता. पिछले 20-25 सालो से मध्यप्रदेश कांग्रेस के दफ्तर में उन दस्तावेजो पर तुरंत सुनवाई होती आ रही थी जिनकी पैरवी इन तीन नेताओं ने की हो. दरहसल बात तो यह है की मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति इन्ही तीन नेताओं के बीच मे घूमती रही है. जब यह कहा जाता है की इन्ही तीन नेताओं के बीच मे घूमती रही तो इसका मतलब यह भी है की पावर - शेयरिंग का केन्द्र भी इन्ही नेताओं के बीच मे रहा है. पर ये नेतागणों को पावर- शेयरिंग का कॉन्सेप्ट समझ में तो आने से रहा. कहता तो कोई नहीं पर हाँ ,अन्दर ही अन्दर तीनो ही खुद को मुखिया मानते रहे है और इसी सोच ने शायद लम्बे वक्त के बाद मुख्यमंत्री निवास पर कांग्रेस का पता ज्यादा दिन तक ठहरने ही नहीं दिया था. खैर अब यह बात तो पुरानी हो गई. नया तो यह है की मध्यप्रदेश एक बार फिर अपने चुनानो को लेकर उत्साहित दिख रहा है और इस बार मामला थोड़ा अलग भी है. क्युकी उन तीन नेतागणों मे से एक तो अब 'मध्यप्रदेश कांग्रेस' के नाम से ही आजाद हो गए है या फिर यू कहे की कांग्रेस से ही आजाद हो गए है. अपनी वरिष्ठता के चलते और कांग्रेस मे अपने पुराने संबंधो को और मजबूती देते हुए दो नेतागण अब भी कांग्रेस के माननीय बने हुए है और गजब के ऐक्टिव भी है. आजकल ऐसा भी सुना है की पुरे समर्पित भाव से इस बार कांग्रेस की वापसी कराने की कोशिश मे भी है , शायद अपने पुराने साथी को जवाब देने का पुरा मन बना चुके है. बात करे पुराने साथी की तो वो भी अब नए अन्दाज में एक बार फिर अपने पुराने क्षेत्र मे ऐक्टिव हो गए है. पुराने साथी ने अपने साथीयों को भी कह दिया है की अपने क्षेत्र मे सक्रियता बनाए और लोगो से संपर्क बनाये रखे. क्युकी इस बार पुराने साथी के लिए तो यह चुनाव अपनी प्रतिष्ठा का भी चुनाव माना जायेगा. जहाँ तक बात करे अभी कांग्रेस के दो नेतागणों की तो उन्होंने तो पूरी तैयारी कर ली है और इस बार पिछली बार से भी ज़्यादा कॉंफिडेंट नज़र आ रहे है. उनका साफ़ मानना है की अब उनके पास खोने को कुछ नहीं है और यही विधानसभा चुनाव उनके लिए अपने जीवन के सबसे ज़्यादा महत्वपूर्व चुनावों में से एक है. अपने जीवन में कई अहम पदों पर रहे ये नेता अब चुनाव शायद किसी पद के लिए नहीं लड़ेंगे. क्युकी यह चुनाव तो दोनों ने ही व्यक्तिगत रूप से अपने ऊपर लेकर रखा है. इस विधानसभा चुनाव को सिर्फ चुनाव के नाते नहीं लेते हुए इन नेताओं ने इसे मध्यप्रदेश में पार्टी के अस्तित्व का चुनाव मान लिया है जो की सही भी है. बस बात वही आती है की पावर को होल्ड करके अगर सही तरह से शेयर किया जाए तो पार्टी का अस्तित्व मध्यप्रदेश में ना सिर्फ बचा रहेगा बल्कि पार्टी में एक नई उमंग लेकर भी आ सकता है.